उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
सात बच्चों में तीन लड़कियाँ थीं और चाल लड़के थे। ये सब मुहम्मद यासीन से छोटे थे।
दूसरी बेगम की बड़ी लड़की नगीना अभी घर के बाहर ही खड़ी थी कि मुहम्मद यासीन और प्रज्ञा मोटर से उतरे। नगीना ने इन्हें देखा तो भाईजान कह लपककर उससे मिली। मुहम्मद यासीन ने कसकर उसे गले लगाया और फिर सिर पर प्यार देकर कहा, ‘‘कब आई हो?’’
‘‘भाईजान! आई नहीं, आए हैं। हम सब आए हैं।’’
‘‘सबसे क्या मतलब?’’
‘‘जो भी अपने बम्बई में थे। अब्बाजान, अम्मियाँ और हम सब।’’
‘‘आओ, भीतर चलें। अब्बाजान और अम्मियों की कदम-बोसी कर लूँ।’’
मुहम्मद यासीन प्रज्ञा और नगीना को पीछे छोड़ आगे निकल गया।
‘‘और तुम यहाँ किसलिए खड़ी हो?’’ प्रज्ञा ने अपनी ननद से पूछ लिया।
‘‘भाईजान और भाभी की इंतजार में। बड़ी अम्मी ने बताया था कि आप अपने माता-पिता के घर पहली बार भाईजान को लेकर गई हैं।’’
प्रज्ञा भी अन्दर जाने लगी तो लड़की ने साथ-साथ चलते हुए पूछा, ‘‘भाभीजान! यह माँ के घर से लाई हैं?’’
‘‘हाँ! बड़े भाई अमरीका से आए हैं और मेरे लिए यह ‘खिलौना लाए हैं।’’
नगीना हंस पड़ी। हँसते हुए पूछने लगी, ‘‘तो भाभीजान! अब आप गुड़ियों से खेला करेंगी?’’
‘‘नहीं! यह मॉडल है।’’
‘‘किस बात का?’’
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