उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
सरस्वती के देहान्त का चौदहवां दिवस था। तेज पीकिंग से लौट आया था। अपनी रिपोर्ट तार द्वारा भेज माँ से अपने लन्दन लौट जाने का कार्यक्रम बनाने आया तो मैत्रेयी यशोदा के पास बैठी थी।
‘‘माँ!’’ तेज ने कहा, ‘‘मेरा काम समाप्त हो गया है। मैं अब अपने हैड-ऑफिस को लौटने का कार्यक्रम बनाने लगा हूँ।’’
इस पर मैत्रेयी ने बता दिया, ‘‘मुझे परसों के हवाई जहाज में सीट मिली है।’’
‘‘किस फ्लाईट में?’’
‘‘बी० ओ० ए० सी० की फ्लाईट में। मैं अपने लिये टिकट खरीद लायी हूं। मैं माता जी से कह रही हूं कि वह भी लन्दन चल सकें तो मैं वहाँ भी अपनी माँ पा जाऊँगी।’’
यशोदा ने कहा, ‘‘शकुन्तला कलकत्ता से दिल्ली आने वाली है। मैं समझती हूं कि उसके आने के उपरान्त ही अपना कार्यक्रम बनाऊँ।’’
‘‘तो माँ! उसे तार कर दो कि कल आ जाये और हम दोनों भी इसी जहाज में ही जाने का प्रबन्ध कर लें।’’
‘‘शकुन्तला ने अगले सप्ताह आने को लिखा है। मैं उसकी प्रतीक्षा करूंगी और यदि वह तैयार हो गई तो उसे भी लन्दन लेती आऊंगी।’’
तीनों, यशोदा, तेजकृष्ण और मैत्रेयी चाय ले रहे थे कि यशोदा ने पूछ लिया, ‘‘इस बार तुम्हारी रिपोर्ट की विशेषता क्या है?’’
‘‘माँ! मैंने आज के ‘डिस्पैच’ में लिखा है कि भारत और चीन में युद्ध होना निश्चित है। उसमें चीन की स्पष्ट विजय होगी और भारत अपना बहुत-सा भू-भाग चीन के हाथ में दे देगा। उसके बाद शीघ्र ही पाकिस्तान और भारत में युद्ध होगा। सम्भव है इसमें विजय भारत की हो, परन्तु पाकिस्तान को विशेष हानि नहीं होगी।’’
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