उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
तेज ने अपनी ‘डिस्पैच’ में लिखा कि भारत सरकार चीन के व्यवहार पर चिन्तित प्रतीत नहीं होती। सरकार के विदेशीय मामलों के प्रवक्ता का कहना है कि इस प्रकार की सीमावर्ती घटनायें प्रायः सब देशों की सीमाओं पर होती रहती हैं। परन्तु संसद में विरोध पक्ष, दुर्बल होते हुए भी, इस विषय पर देश में उत्तेजना उत्पन्न कर रहा है।
इस विषय की ‘केबल’ बना वह गाड़ी में तारघर गया और ‘लन्दन टाइम्स’ लन्दन को ‘केबल’ कर आया।
तारघर से घर पहुंचा तो माँ ने बताया, ‘‘हस्पताल से मैत्रेयी का टेलीफोन आया है कि उसकी माता जी का देहान्त हो गया है और शव प्रातःकाल मिलेगा।’’
‘‘और वह स्वयं?’’
‘‘उसका कहना है कि वह टैक्सी में यहां आ रही हैं।’’
तेज रात का खाना खा ही रहा था कि मैत्रेयी कोठी पर आ पहुँची। यशोदा के कहने पर उसने स्नानादि से निवृत्त हो काफी का एक प्याला लिया और सो रही।
अगले दिन सरस्वती का शव मिला तो उसका दाह-संस्कार कर दिया गया। सरस्वती के कुछ सम्बन्धी जालन्धर और कुछ चण्डीगढ़ में रहते थे। उनको सूचना भेज देने के उपरान्त मैत्रेयी तेरह दिन तक तेज कृष्ण के घर में रही।
इस काल में तेज भारत, पाकिस्तान और चीन, तीनों देशों में अपना काम समाप्त कर आया।
तेरह दिन मेत्रैयी के कई सम्बन्धी दिल्ली में आये और शोक प्रकट कर गये।
मैत्रेयी ने लन्दन जाने के लिये अपनी सीट हवाई जहाज में रिजर्व करवा ली थी।
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