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बिखरे मोती
बिखरे मोती
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2009 |
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 7135
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आईएसबीएन :9781613010433 |
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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ
फैसला सुनाकर न्यायाधीश महाशय जेल आये। कोतवाल और राय साहेब कुन्दनलाल की गवाही हो जाने पर अभियुक्तों में से एक दो साल की सख्त कैद और २०००) जुर्माना, दूसरे को डेढ़ साल की सख्त कैद और १५००) जुर्माना, तीसरे को एक साल की सख्त कैद और ५००) जुर्माना की सज़ा दे दी गयी। अभियुक्तों ने मुकदमे में किसी प्रकार का भाग नहीं लिया और न पेशी ही बढ़वायी, इसलिए मुकदमा करीब एक घन्टे में ही समाप्त हो गया।
तीनों अभियुक्त प्रतिष्ठित सज्जन थे और राय साहेब की जान-पहिचान के थे। मुकद्दमा खत्म हो जाने पर राय साहेब ने उनसे माफी माँगते हुए कहा, ‘क्षमा करना भाई, इस पापी पेट के कारण लाचार हैं, वरना क्यों हमारे दिल में देश-प्रेम नहीं है?’ यह कहकर उन्होंने अपनी आत्मा को संतोष दे डाला और जल्दी-जल्दी अस्पताल आये। गोपू की हालत और भी ज्यादा खराब हो गयी थी। उसकी नाड़ी क्षीण पड़ती जा रही थी। राय साहेब के पहुँचने पर उसने पहिली ही बार आँखें खोलीं। उसके मुँह पर हल्की-सी मुस्कराहट थी। धीमी आवाज़ से उसने कहा, बन्दे मा...‘म्’ की ध्वनि नहीं निकल पायी; ‘म्’ के साथ ही उसका मुँह खुला रह गया, और आँखें सदा के लिए बन्द हो गयीं। उसकी माता चीख मार कर लाश पर गिर पड़ी। राय साहेब के शून्य हृदय में बार-बार प्रश्न उठ रहा था, ‘यह सब किसके लिए?’ और मस्तिष्क से प्रतिध्वनि उसका उत्तर दे रही थी, ‘पापी पेट के लिए।’
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