लोगों की राय

परिवर्तन >> बिखरे मोती

बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

6 पाठक हैं

सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

पापी पेट

 

आज सभा में लाठी चार्ज हुआ। प्रायः पाँच हजार निहत्थे और शान्त मनुष्यों पर पुलिस के पचास जवान लोहबन्द लाठियाँ लिये हुए टूट पड़े। लोग अपनी जान बचाकर भागे; पर भागते-भागते भी प्रायः पाँच सौ आदमियों को सख्त चोंटें आयीं और तीन तो बेहोश होकर सभा-स्थल में ही गिर पड़े। तीन-चार प्रमुख व्यक्ति गिरफ्तार करके जेल भेज दिये गये।

पुलिस ने झंडे के विशाल खम्भे को काटकर गिरा दिया और आग लगा दी। तिरंगा झंडा फाड़ कर पैरों से रौंद डाला गया। सबके हृदय में सरकार की सत्ता का आतंक छा गया।

प्रकट रूप से विजय पुलिस की ही हुई। उनके सामने सभी लोग भागते हुए नजर आये। और यदि किसी ने अपनी जगह पर खड़े रहने का साहस दिखलाया तो वह लाठियों की मार से धराशायी कर दिया गया। परन्तु इस विजय के होते हुए भी उनके चेहरों पर विजय का उल्लास नहीं था, प्रत्युत ग्लानि ही छायी थी। उनकी चाल में आनन्द का हलकापन न था, वरन् ऐसा मालूम होता था कि जैसे पैर मन-मन भर के हो रहे हों। हृदय उछल नहीं रहा था, वरन् एक प्रकार से दबा-सा जा रहा था।

पुलिस लाइन में पहुँच कर सिपाही लाठी चार्ज की चर्चा करने लगे। सभी को लाठी चार्ज करने, निहत्थे-निरपराध व्यक्तियों पर हाथ चलाने का अफसोस हो रहा था। सिपाही रामखिलावन ने अपनी कोठरी में जाकर अंदर से दरवाजा लगा लिया और लाठी चूल्हे में जला दी। उसकी लाठी के वार से एक सुकुमार बालक की खोपड़ी फट गयी थी। उसने मन में कहा, बिचारे निहत्थे और निरपराधों को कुत्तों की तरह लाठी से मारना! राम, राम, यह हत्या। किसके लिए? पेट के लिए? इस पापी पेट को तो जानवर भी भर लेते हैं। फिर हम आदमी होकर इतना पाप क्यों करें? इस बीस रुपट्टी के लिये यह कसाईपन? न, अब तो यह न हो सकेगा। जिस परमात्मा ने पेट दिया है वह अन्न भी देगा। लानत है ऐसी नौकरी पर। और दूसरे दिन नौकरी से इस्तीफा देकर वह अपने देश को चला गया।

थानेदार बरकतउल्ला लाठी चार्ज के समय चिल्ला-चिल्लाकर हुक्म दे रहे थे ‘मारो सालों को, आये हैं स्वराज्य लेने, लगे खूब कस-कसके’। परन्तु अपने क्वार्टर में पहुँचते-पहुँचते उनका जोश ठंडा पड़ गया। वे जबान के खराब अवश्य थे, पर हृदय के इतने खराब न थे। दरवाजे के अन्दर पैर रखते ही उनकी बीबी ने कहा—देखो तो यह गफूर कैसा फूट-फूटकर रो रहा है। क्या किया है आज तुमने? बार-बार पूछने पर भी यही कहता है कि अब्बा ने गोपू को जान से मार डाला है। मेरी तो समझ में ही नहीं आता कि क्या हुआ?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book