परिवर्तन >> बिखरे मोती बिखरे मोतीसुभद्रा कुमारी चौहान
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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ
किन्तु कभी-कभी जब उनसे न होता तो वे रमाकान्त से कुछ-न-कुछ कह बैठतीं तो भी वे यही कहकर कि ‘इसमें क्या बुराई है’ टाल देते। उनकी समझ में रमाकान्त इस प्रकार माँ की बात न मानने के लिए ही पत्नी को शह देते थे। इसलिए वे प्रत्यक्ष रूप से तो निर्मला को अधिक कुछ न कह सकतीं थीं किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से, कुत्ते-बिल्ली के बहाने ही सही; अपने दिल का गुबार निकाला करतीं। निर्मला सब सुनती और समझती किन्तु वह सुनकर भी न सुनती और जानकर भी अनजान बनी रहती।
वह अपना काम नियमपूर्वक करती रहती। इन बातों का उसके ऊपर कुछ भी प्रभाव न पड़ता। कभी-कभी उसे कष्ट भी होता किन्तु वह उसे प्रकट न होने देती। वह सदा प्रसन्न रहतीं, यहाँ तक कि उसके चेहरे पर शिकन तक न आती। वह स्वयं किसी की बुराई न करना चाहती थी, उसके विरुद्ध चाहे कोई भी करता रहे।
एक दिन कालेज से लौटते ही रमाकान्त ने कहा—‘आज एक बड़ा विचित्र किस्सा हो गया, निर्मला!’
‘क्या हुआ?’—निर्मला ने उत्सुकता से पूछा।
घृणा का भाव प्रगट करते हुए रमाकान्त बोले—‘हुआ क्या? यही कि तुम्हारी बिट्टन को न जाने किससे गर्भ रह गया है, और अब चार-पाँच महीने का है। बात खुलते ही आज वह घर से निकाल दी गयी है। उसके मायके में तो कदाचित् कोई है ही नहीं। सड़क पर बैठी रो रही है।’
बिट्टन बाल विधवा थी। जन्म ही की दुखिया थी, इसलिए निर्मला सदा उससे प्रेम और आदर का व्यवहार करती थी। बिट्टन की करुणाजनक अवस्था से निर्मला कातर हो उठी। उसने रमाकान्त जी से पूछा—फिर उसका क्या होगा? अब वह कहाँ जायगी?
रमाकान्त जी ने उपेक्षा से कहा—कहाँ जायगी, मैं क्या जानूँ, जैसा किया वैसा भोगेगी।
निर्मला के मुँह से ठंडी आह निकल गयी। कुछ देर बाद न जाने क्या सोचकर वह दृढ़ स्वर में बोली—तो मैं जाती हूँ, उसे लिवा लाती हूँ। जब तक कोई दूसरा प्रबन्ध न हो जायगा, वह मेरे साथ रही आवेगी।
रमाकान्त घबराकर बोले—नहीं, नहीं, ऐसी बेवकूफ़ी करना भी मत। उसे अपने घर लाकर क्या अपनी बदनामी करवानी है? तुम्हें तो कोई कुछ न कहेगा, सब लोग मुझे ही बदनाम करेंगे।
निर्मला ने दयार्द्र भाव से कहा—अरे! तो इतनी छोटी-छोटी सी बातों से क्यों डरते हो? परमात्मा तो हमारे हृदय को पहचानेगा। मुझे तो उसकी अवस्था पर बड़ी दया आती है। तुम कहो तो मैं अभी जाकर उसे लिवा लाऊँ।
रमाकान्त के कुछ बोलने के पहिले ही उनकी माँ बोल उठीं—ऐसी औरतों का तो इसे बड़ा दर्द होता है, घर बुलाने जा रही है। जाय कहीं भी मुँह काला करे। पर याद रखना, खबरदार, जो उसे घर में बुलाया तो! मैं अभी से कहे देती हूँ। अगर उस छूत ने घर में पैर भी रक्खा तो अच्छा न होगा।
निर्मला धीरे से बोली—अगर वह आ ही गयी तो फिर क्या करोगी, अम्मा जी?
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