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बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

विवाह के कुछ दिन बाद चम्पा के पति नवलकिशोर के मित्र सन्तोष ने नवलकिशोर को चम्पा समेत अपने घर पर आने का निमन्त्रण दिया और यह लोग सन्तोष कुमार को बिना किसी प्रकार की सूचना दिये ही उसके घर पर अलीगढ़ के लिए रवाना हो गये—सूचना न देकर यह लोग अचानक पहुँचकर सन्तोष कुमार और बड़ी अम्माँ को आश्चर्य में डाल देना चाहते थे। रास्ता बड़े आराम से कटा। गर्मी तो नाम को न थी। रिमझिम-रिमझिम बरसता हुआ पानी बड़ा ही सुहावना लग रहा था।

जब वे लोग अलीगढ़ स्टेशन पर उतरे, उस समय कुछ अँधेरा हो चला था। गाँव स्टेशन से पाँच छः मील दूर था; इसलिए नवल ने सोचा कि स्टेशन पर ही भोजन करके तब गाँव के लिए रवाना होंगे। चम्पा को सामान के पास बिठाकर नवल भोजन की तलाश में निकला। हलवाई की दुकान पर सब चीजें तो ठीक थीं, पर पूरियाँ जरा ठंडी थीं। वह ताजी पूरियाँ बनवाने के लिए वहीं ठहर गया।

इधर सामान के पास अकेले बैठे-बैठे चम्पा का जी ऊबने लगा। वह एक पुस्तक निकाल कर पढ़ने लगी। थोड़ी देर के बाद ही एक आदमी ने आकर उससे कहा कि बाबू जी होटल में बैठे हैं, आपको बुला रहे हैं।

‘पर वे तो खाना यहीं लाने वाले थे न?’

‘होटल यहाँ से करीब ही है। वे कहते हैं कि आप वहीं चल के भोजन कर लें। कच्चा खाना यहाँ लाने में सुभीता न पड़ेगा।’

उठते-उठते चम्पा ने कहा—सामान के पास कौन रहेगा?

‘सामान तो कुली देखता रहेगा, आप फिक्र न करें; दस मिनट में तो आप वापिस आ जायेंगी।’

क्षण भर तक चम्पा ने न जाने क्या सोचा, फिर उस आदमी के साथ चल दी।

स्टेशन से बाहर पहुँचते ही उस आदमी ने पास के एक मकान की तरफ़ इशारा करके कहा, ‘वह सामने होटल है, बाबूजी वहीं बैठे हैं।’

चम्पा ने जल्दी-जल्दी पैर बढ़ाये। पास ही एक मोटर खड़ी थी। उस आदमी ने पीछे से चम्पा को उठाकर मोटर में डाल दिया, मोटर नौ दो ग्यारह हो गयी। चम्पा का चीखना-चिल्लाना कुछ भी काम न आया।

आध घंटे के बाद जब नवल खाना लेकर लौटा तो चम्पा का कहीं पता न था। इधर-उधर बहुत खोज की। गाड़ी का एक-एक डिब्बा ढूँढ़ डाला, पर जब चम्पा कहीं न मिली, तो लाचार हो पुलिस में इत्तिला देनी पड़ी। परदेश में वह और कर ही क्या सकता था? किन्तु वहाँ की पुलिस भी, ठाकुर साहब द्वारा कुछ चाँदी के सिक्कों के बल पर, सब कुछ जानती हुई अनजान बना दी जाती थी। फिर भला एक परदेशी की क्या सुनवाई होती? जब नवल किसी प्रकार चम्पा का पता न लगा सका, तो वह संतोषकुमार के गाँव भी न जा सका। वहीं धर्मशाले में ठहर कर चम्पा की खोज करने लगा।

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