लोगों की राय

उपन्यास >> आंख की किरकिरी

आंख की किरकिरी

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ebook
पुस्तक क्रमांक : 3984
आईएसबीएन :9781613015643

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

103 पाठक हैं

नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....

16

बिहारी ने सोचा - 'ऊँहूँ! दूर-दूर रहने से अब काम नहीं चलने का। चाहे जैसे हो, इसके बीच अपने लिए भी जगह बनानी पड़ेगी। इनमें से किसी को यह पसंद तो न होगा, लेकिन फिर भी मुझे रहना पड़ेगा।'

बुलावे या स्वागत की अपेक्षा किए बिना ही बिहारी महेंद्र के व्यूह में दाखिल होने लगा। उसने विनोदिनी से कहा - 'विनोद भाभी, इस शख्स को इसकी माँ ने बर्बाद किया, इसकी बीवी बर्बाद कर रही है - तुम भी उस जमात में शामिल न हो कर इसे कोई नई राह सुझाओ।'

महेंद्र ने पूछा - 'यानी?'

बिहारी-'यानी मेरे-जैसा आदमी, जिसे कभी कोई नहीं पूछता'

महेंद्र - 'उसको बर्बाद करो! बर्बाद होने की उम्मीदवारी इतनी आसान नहीं बच्चू कि दरखास्त दे दी और मंजूर हो गई।'

विनोदिनी हँस कर बोली - 'बर्बाद होने का दम होना चाहिए बिहारी, बाबू!'

बिहारी ने कहा - 'अपने आप में वह खूबी न भी हो तो पराए हाथ से आ सकती है। एक बार देख ही लो पनाह दे कर!'

विनोदिनी - 'यों तैयार हो कर आने से कुछ नहीं होता-लापरवाह रहना होता है। क्या खयाल है, भई आँख की किरकिरी! अपने इस देवर का भार तुम्हीं उठाओ न!'

आशा ने दो उँगुलियों से उसे ठेल दिया। बिहारी ने भी इस दिल्लगी में साथ न दिया।

विनोदिनी से यह छिपा न रहा कि बिहारी को आशा से मजाक करना पसंद नहीं। वह आशा पर श्रद्धा रखता है और विनोदिनी को उल्लू बनाना चाहता है, यह बात उसे चुभी।

उसने आशा से फिर कहा - 'तुम्हारा यह भिखारी देवर मुझे इंगित करके तुमसे ही दुलार की भीख माँगने आया है- कुछ दे दो न, बहन!'

आशा बहुत खीझ उठी।जरा देर के लिए बिहारी का चेहरा तमतमा उठा, दूसरे ही दम वह हँस कर बोला - 'दूसरे पर यों टाल देना ठीक नहीं है।'

विनोदिनी समझ गई कि बिहारी सब बंटाधार करके आया है - इसके सामने हथियारबंद रहना जरूरी है। महेंद्र भी आजिज आ गया। बोला - 'बिहारी, तुम्हारे महेंद्र भैया किसी व्यापार में नहीं पड़ते, जो पास है, उसी से खुश हैं वे।'

बिहारी - 'खुद न पड़ना चाहते हों चाहे, मगर किस्मत में लिखा होता है तो व्यापार की लहर बाहर से भी आ सकती है।'

विनोदिनी - 'बहरहाल, आपका तो हाथ खाली है, फिर आपकी लहर किधर से आती है?'

और व्यंग्य की हँसी हँस कर उसने आशा को दबाया। आशा कुढ़ कर चली गई। बिहारी मुँह की खा कर गुस्से में भी चुप रहा। वह जाने को तैयार हुआ, तो विनोदिनी बोल उठी - 'हताश हो कर न जाइए बिहारी बाबू, मैं आँख की किरकिरी को भेजे देती हूँ।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai