लोगों की राय

उपन्यास >> आंख की किरकिरी

आंख की किरकिरी

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ebook
पुस्तक क्रमांक : 3984
आईएसबीएन :9781613015643

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

103 पाठक हैं

नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....

विनोदिनी ने झट से चिट्ठी ले कर देखी, खुली थी वह। लिफाफे पर उसी के हरफ में बिहारी का नाम लिखा था। अंदर से चिट्ठी निकाली। वह उसी की लिखी वही चिट्ठी थी। उलट कर देखा, बिहारी का जवाब तो कहीं न मिला।

थोड़ी देर चुप रह कर विनोदिनी ने पूछा - 'यह चिट्ठी तुमने पढ़ी है?'

विनोदिनी के चेहरे के भाव से महेंद्र को डर लगा। वह झूठ बोल गया - 'नहीं।'

विनोदिनी ने चिट्ठी फाड़ डाली। उसके टुकड़े-टुकड़े किए और खिड़की से बाहर फेंक दिए।

महेंद्र बोला - 'मैं घर जा रहा हूँ।'

विनोदिनी ने कोई जवाब न दिया।

महेंद्र - 'तुमने जैसा चाहा है, मैं वैसा ही करूँगा। सात दिन मैं वहीं रहूँगा। कॉलेज आते समय रोज नौकरानी की मार्फत यहाँ का सारा प्रबंध कर जाया करूँगा। तुमसे भेंट करके तुम्हें आजिज न करूँगा।'

विनोदिनी महेंद्र की कोई बात सुन भी पाई या नहीं, कौन जाने, मगर उसने कोई जवाब न दिया। खुली खिड़की से बाहर अँधेरे आसमान को ताकती रही।

अपनी चीजें उठा कर महेंद्र वहाँ से निकल पड़ा।

सूने कमरे में विनोदिनी बड़ी देर तक काठ की मारी-सी बैठी रही और अंत में मानो जी-जान से अपने को सजग करने के लिए छाती का कपड़ा फाड़ कर अपने पर बेरहमी से चोट करने लगी।

आवाज पा कर नौकरानी दौड़ी आई - 'दादी जी, क्या कर रही हैं?'

'तू चली जा यहाँ से'- डपट कर विनोदिनी ने छमिया को कमरे से बाहर निकाल दिया। उसके बाद जोरों से किवाड़ बंद करके दोनों हाथों से मुट्ठी बाँध कर जमीन पर लोट गई - तीर खाए जानवर जैसी रोने लगी। अपने को इस तरह विक्षत और श्रांत बना कर विनोदिनी रात-भर खिड़की के पास नीचे पड़ी रही।

सुबह जैसे ही सूरज की किरणें कमरे में आईं, विनोदिनी को अचानक ऐसा लगा, बिहारी गया नहीं होगा, कहीं उसे चकमा देने के लिए महेंद्र ने यों ही झूठ कह दिया हो। उसने छमिया को बुला कर कहा - 'छम्मी, तू फौरन जरा बिहारी भाई साहब के यहाँ जा उन लोगों का हाल पूछ आ।'

छमिया कोई घंटे-भर बाद लौट कर बोली - 'उनके घर के सारे खिड़की-दरवाजे बंद हैं। दरवाजा पीटने पर अंदर से बैरा निकला। बोला - 'वे घर पर नहीं हैं। वे घूमने के लिए पछाँह गए हैं'।'

विनोदिनी के संदेह का कोई कारण ही न रहा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai