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उपन्यास >> न जाने कहाँ कहाँ

न जाने कहाँ कहाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2100
आईएसबीएन :9788126340842

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी जी का एक और उपन्यास

भवेश भौमिक की नीति यही थी कि कोई किसी को 'आप' नहीं कहेगा। 'तुम' कहना है चाहे कोई छोटा हो चाहे बड़ा।

सौम्य बोला, “इस बीच एक दूसरी तरह की समस्या आ गयी है।"

ब्रतती बोली, “इसे दूसरी तरह की क्यों कह रहे हो सौम्य? कह सकते हो एक ही समस्या-वृक्ष की एक और शाखा।”

उसके बाद उसने संक्षेप में उदय वाली बात बतायी। उदय की प्रार्थना भी पेश कर दी।

गौतम बोला, “हम अकेले किसी तरह का डिसीशन नहीं ले सकते हैं। सवको आने दो।"

“तब तो सभी को एक दिन यहाँ इकट्ठा होने की नोटिस देनी होगी।"

ब्रतती ज़रा-सा हँसकर बोली, “यह तो कुछ वैसा ही हुआ कि मच्छर मारने के लिए तोप के गोले छोड़े गये क्यों गौतम? मुझे तो इसमें आपत्ति का कोई कारण नज़र नहीं आ रहा है। अगर कोई प्रश्न सामने है तो वह है इस लड़के के अकेले रहने का।"

गौतम क्रुद्धभाव से बोला, “केवल इतनी-सी बात है? यही रात भर रहने पर कितनी तरह की मुसीबतें आ सकती हैं। यह तुम नहीं जानती हो?

ब्रतती हँसी। बोली, “गौतम, वह नाबालिग तरुणी कन्या नहीं है, निहायत ही एक बालक है।"

"तो क्या हुआ? यही कौन जानता है कि यह एक चाल नहीं है।"

"चाल?"

"हाँ ! दो रात रहने के बाद, एकाएक उसका बाप पुलिस लेकर आ धमक सकता है कि हमारे लड़के को इन लोगों ने रोक रखा है। क्यों अत्री?'

“मैं फिर याद दिला रही हूँ गौतम, वह लड़की नहीं है। लड़का है। पुलिस को वह खुद जवाब दे देगा।"

अत्री बोल उठी, “गौतम तुम ठीक कह रहे हो। शायद यही लड़का पलट जाये और कुछ और कहने लगे। दुनिया बड़ी भयानक है ब्रतती।"  

ब्रतती समझाते हुए बोली, “तब भी तो हम इसी दुनिया में काम करना चाह रहे हैं, अत्री। इनकी बुद्धि व विचारों में परिवर्तन लाना चाहते हैं। ठीक है, ऐसा कछ हुआ अगर तो मैं इसकी सारी जिम्मेदारी ले लूंगी।"

"तुम? मतलब?"

“मतलब पुलिस को जो कहना है उसे कहने की ज़िम्मेदारी अगर मैं ले लूँ?'

"बिलावजह बहादुरी दिखाने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम क्या कहते हो सौम्य?

सौम्य हँसकर बोला, “मैं क्या कहूँगा? ब्रतती भी तो नाबालिग नहीं है-एडल्ट है। जैसा ठीक समझे, करे।"

गौतम कुछ ज़िद करता हुआ बोला, "फिर भी, बिना सबसे पूछे.." तभी सुकुमार आ गया।

आते ही तख्त पर चढ़कर अगरबत्ती जलायी। बोला, “भवेश दा, देर हो गयी। रास्ता जाम था।"

गौतम बोला, “अच्छा, अच्छा। इधर एक प्राबलम है..." सुकुमार ने पूरे ध्यान से सारी बातें सुनीं।

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