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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


होली के दिन थे। रात को संगीत के कई नए कार्यक्रमों के बाद जब ग्रामोफोन चालू किया गया, तो मुन्नी बाई कुछ देर तक नाज-नखरे के साथ गाती रहीं और फिर 'चट' की-सीआवाज हुई और लगा कि मानो किसी ने बाई जी का गला दबोच दिया हो। भारी आवाज के साथ
रिकार्ड का चलना धीमा हो गया और फिर वह अपने-आप ही बन्द भी हो गया। सभी ने अपनी बुद्धि दौड़ाई, पर नतीजा कुछ नहीं निकला। कानूनगो परिवार की महिला ने अपने पुत्र की ओर भारी उम्मीद के साथ देखा। लड़के के पिता ने बताया था कि वह सातवीं में साइंस लिए है और आगे चल कर बड़ा इंजीनियर बनेगा। पर वह भी राय देने में असफल रहा। बड़ी मायूसी  के साथ कार्यकर्ताओं ने ऐलान किया कि कार्यक्रम समाप्त किया जाता है। लेकिन सभी परेशान थे कि सूबेदार साहब को क्या जवाब दिया जाएगा। वह बाजा लगभग एक साल से वहां के  लोगों का मनोविनोद किया करता था। अब लगा कि हमारा वह अभिन्न मित्र सदा के लिए हमसे बिछुड़ गया है। लेकिन एक ढाढ़स तो था कि सूबेदार परिवार की छोटी बहू समारोह में  थी। वह अवश्य ही अपनी सास को बताएगी कि किसी ने जान-बूझ कर शरारत नहीं की। उसने अपनी सहेलियों से यह बात कही भी थी कि किसी का कसूर नहीं है।

समारोह समाप्त होने पर भी संयोजक मंडली बड़ी देर तक उस स्थिति पर विचार करती रही  और काफी विचार विनिमय के बाद तय हुआ कि वह मशीन जोगा लोहार को दिखलाई जाए। कस्बे के नुक्कड़ पर मुख्य बाजार के पिछवाड़े जो हरिजनों की बस्ती थी, वहां वह अपनी  दुकान पर काम करता था। वह बूढ़ा प्रति दिन आंखों पर छोटे-छोटे चश्मे लगाए हुए कई पुर्जों को बारीकी से भांपा करता था। उस मोहल्ले में और कारीगर भी रहा करते थे, जो कि न जाने कितनी पीढ़ियों से अपनी कारगरी की वस्तुओं के निर्माण से कस्बे की आवश्यकताएं पूरी किया करते थे। जोगा के शरीर में उसके परदादा, दादा, पिता से पाया हुआ खून बहता था, जिसमें एक कुशल लोहार के सभी गुण थे। वह खच्चरों के पावों के साधारण खुरों से लेकर खेती की आवश्यकता के सभी सामान बनाया करता था। लोगों का कहना था कि उसका बनाया हुआ हँसिया इतना तेज होता है कि उससे भैंस की गरदन एक बार में ही उड़ जाती है। इसलिए  तांडव-नृत्य या अन्य समारोहों में जहां कि बलिदान हुआ करते थे, उसकी बनाई और तेज की गई थमाली ही व्यवहार में लाई जाती थी। जिस गांव में उत्सव हुआ करता था, वहां का मुखिया आकर अपने हथियार ठीक करवा के ले जाता था। समारोह के बाद उस कारीगर के सम्मानार्थ एक 'सीधा' (खाने का पूरा कच्चा सामान), पांच आने और किसी जानवर का सिर उसके पास भेज दिया जाता था। समीप के गांवों के समारोहों में वह खुद भी शामिल हुआ करता था।

उस रात्रि को जबकि सभी लोग ग्रामोफोन की समस्या से उलझे हुए थे तो न जाने किसने उस कारीगर का नाम लें लिया और सबको भरोसा हो गया कि वह अवश्य ही इस मुसीबत को हल कर देगा। फिर तो, सब मिलकर उसके ज्ञान भंडार की बातें करने लग गए। किसी ने उसका दावा बताया कि वह किसी भी तरह की मशीन को बना लेगा। एक बार उसने एक अलार्म की घड़ी ठीक की थी। दूसरे का कहना था कि वह बन्दूक तथा दूसरे हथियार बनाना भी जानता है। एक वृद्ध महोदय ने तो उसके परिवार का इतिहास शुरू करते हुए बताया कि आज राजदरबार वहां से भले चला गया है, पर एक जमाना था जबकि उसके पुरखे रंगीन अंगरखा पहनते थे और सदा ही राजदरबार के शिकार में शरीक होते थे। उसका परिवार युद्ध के अस्त्र-शस्त्र बनाने में निपुण था। गोरखों ने जब यह देश जीता, तो उसके दादा को अपने यहां नौकर रखना चाहा था। वे चाहते थे कि वह उनके लिए खुकरियां बनाया करे। लेकिन उसने अपनी असमर्थता प्रकट की थी।

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