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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


यदि मां से यह कहें कि मुझे ललिता से प्रेम हो गया है, उसी से विवाह कर दो, तब भी कोई विश्वास नहीं करेगा। सभी सोचेंगे, जिस प्रकार प्रेम के उन्माद का पहला नशा क्षण मात्र में उतर गया, यह भी उतर जाएगा। फिर अन्तर्जातीय विधवा विवाह की आज्ञा माता-पिता कैसे देंगे? समाज में कितनी बदनामी होगी! कहां ऊंचे घराने के लडके कमल, कहां वह अनाथ ललिता! वह कितनी ही सौदर्यवती हो, पवित्र हो, किन्तु उस जैसी परिस्थति में रहनेवाली स्वच्छन्द विधवा को पवित्र कौन मानेगा? खानदान पर कलंक का टीका लग जाएगा।

और, यही क्या मालूम कि सचमुच ललिता एक सरल, पवित्र नारी है-उसनें प्रथम बार कमल से ही प्रणय व्यापार किया है। सम्भव है, उसके जीवन में और भी कमल जैसे यात्री आ चुके हों। वह वेदना के आंसू और विकलता बनावट ही हो-धनाढ्य घर के प्रतिभाशाली रूपवान युवक को फंसाने के लिए युक्ति हो। कमल से उसने विवाह का वायदा करके तो अपने को समर्पित किया नहीं था।

ऐसी शकाएं कमल के हृदय मे स्थान बनाती गईं और वे कुछ निश्चय नहीं कर पाए। मुंह लटकाए वे यन्त्रचालित की भांति, विवाह कर आए और धीरे-धीरे ललिता को भूलने लगे। एक पढ़ी-लिखी,-आधुनिक संस्कृति की सुन्दरी पत्नी ने उनके मन को वश में कर लिया।

ललिता ने बहुत दिनों तक आशा भरे हृदय से कमल की प्रतीक्षा की और मन की व्यथा मन में ही समेटे, किसी प्रकार दिन व्यतीत करती रही। किन्तु जब कमल ने उसके पत्रों का उत्तर देना भी बन्द कर दिया, तो वह रो-धो कर ही अपने को शान्त नहीं कर सकी, वेदना और निराशा में उन्मादिनी-सी बन कर घर की व्यवस्था का भार पड़ोसिन वृद्धा पर छोड़करर तीर्थयात्रा के बहाने चल दी और कमल का ही एक मकान किराए पर लेकर रहने लगी। धीरे-धीरे उसे सब-कुछ मासूम हो गया।

उसका विचार कमल को बदनाम करने या बदला लेने का नहीं था। वह एक बार एकान्त में कमल से भेंट कर इस निष्ठुरता का कारण जानना चाहती थी। क्या सत्य ही ललिता के प्रेम को वे भूल गए, या विवश हैं? सब देख-सुन कर भी जैसे उसके हृदय को विश्वास नहीं होता था कि कमल उसे धोखा दे सकते हैं। एक बार वह किसी प्रकार कमल से साक्षात्कार करने को विकल थी। इसी योजनावश वह गाने-बजाने के बहाने कमल के घर भी आने लगी थी और कमल के पुत्र उत्पन्न होने की खुशी में नित्य-प्रति ही गाना गाने आती थी। आते-जाते कितनी बार कमल मिल भी जाते, लेकिन कभी उन्होंने ललिता की ओर आंख उठा कर देखा भी नहीं, जैसे वे उसकी छाया से भी बचना चाहते हों। अत: ललिता की वेदना बढ़ती ही गई और आज वह चरम सीमा को पहुंच गई।

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