कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
गांव के दो भले आदमी मेंढ़क-मेंढ़की के पिता भी बन गए। मुहूर्त शोधा
गया-जल्दी का मुहूर्त!
बाजे-गाजे के साथ फलदान, सगुन की रस्में अदा की गईं। दोनों के घर
दावत-पंगत हुई। मेंढ़क-मेंढ़की नावते के ही पास थे। वही उन्हें खिला-पिला
रहा था। अन्यत्र हटा कर उनके मरने-जीने की जोखिम कौन ले?
तिलक-भांवर का भी दिन आया। पानी के एक बर्तन में मेंढ़की उस घर में रख दी
गई, जिसके स्वामी को कन्यादान करना था। उसने सोचा-''हो सकता है, पानी बरस
पड़े। कन्यादान का पुण्य तो मिलेगा ही।''
मेंढ़क दूल्हा पालकी में बिठलाया गया। रखा गया बांध कर।
उछल कर कहीं चल देता, तो सारा कार-बार ठप हो जाता। आतिश-बाजी भी फूंकी गई,
और बड़े पैमाने पर। एक तो, आतिशबाजी के बिना ब्याह क्या? दूसरे,
अगर पिछले साल किसी ने आतिशबाजी पर एक रुपया फूंका था, तो इस साल कम से कम
सवा का धुआं तो उड़ाना ही चाहिए।
तिलक हुआ। जैसे ही मेंढ़क के माथे पर चन्दन लगाने के लिए बाह्मण ने हाथ
बढ़ाया कि मेंढ़क उछला। ब्राह्मण डर के मारे पीछे हट गया। खैरियत हुई कि
मेंढ़क एक पक्के डोरे से बर्तन में बंधा था, नहीं तो उसकी पकड़-धकड़ में
मुहूर्त चूक जाता। कुछ लोग मेंढ़क की उछल-कूद पर हँस पड़े। कुछ ने ब्राह्मण
को फटकारा-''डरते हो? दक्षिणा मिलेगी, पण्डित जी! करो तिलक।''
पण्डित जी ने साहस बटोरकर मेंढ़क के ऊपर चन्दन छिड़क दिया। फिर पड़ी भांवर।
एक पट्टे पर मेंढ़क बांधा गया, दूसरे पर मेंढ़की। दोनों ने टर्र-टर्र शुरू
की।
नावता बोला-''ये एक-दूसरे से ब्याह करने की चर्चा कर रहे हैं।''
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