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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ



मेंढ़की का ब्याह

वृन्दावनलाल वर्मा

उन जिलों में त्राहि-त्राहि मच रही थी। आषाढ़ चला गया, सावन निकलने को हुआ, परन्तु पानी की बूंद नहीं। आकाश में बादल कभी-कभी छिटपुट होकर इधर-उधर बह जाते। आशा थी कि पानी बरसेगा, क्योंकि गांववालों ने कुछ पत्रों में पढ़ा था कि कलकत्ता-मद्रास की तरफ जोर की  वर्षा हुई है। लगते आसाढ़ थोड़ा सा बरसा भी था। आगे भी बरसेगा, इसी आशा में अनाज बो दिया गया था। अनाज जम निकला, फिर हरियाकर सूखने लगा। यदि चार-छ: दिन और न  बरसा, तो सब समाप्त। यह आशंका उन जिलों के गांवों में घर करने लगी थी। लोग व्याकुल  थे।

गांवों में सयानों की कमी न थी। टोने टोटके, धूप-दीप, सभी-कुछ किया, लेकिन कुछ न हुआ। एक गांव का पुराना चतुर नावता बड़ी सूझ-बूझ का था। अथाई पर उसने बैठक करवाई। कहां क्या किया गया है, थोड़ी देर इस पर चर्चा चली। नावते ने अवसर पाकर कहा-''इन्द्र वर्षा के देवता हैं-उन्हें प्रसन्न करना पड़ेगा।''

''सभी तरह के उपाय कर लिए गए हैं। कोई गांव ऐसा नहीं हैं, जहां कुछ न कुछ न किया  गया हो। पर अभी तक हुआ कुछ भी नहीं है।''
-बहुत-से लोगों ने तरह-तरह से कहा और उन गांवों के नाम लिए : होम-हवन, सत्यनारायण  कथा, बकरों-मुर्गों का बलिदान, इत्यादि किसी-किसी ने फिर सुझाए; परन्तु नावते की एक नई सूझ अन्त में सबको माननी पड़ी। नावते ने कहा-''बरसात में ही मेंढ़क क्यों इतना बोलते हैं? क्यों इतने बढ़ जाते हैं? कभी किसी ने सोचा? इन्द्र वर्षा के देवता हैं, सब जानते हैं। पानी की झड़ी के साथ मेंढ़क बरसते हैं, सो क्यों? कोई किरानी कह देगा कि मेंढ़क नहीं बरसते। बिलकुल गलत। मैंने खुद बरसते देखा है। बड़ी नांद या किसी बड़े बर्तन को बरसात में खुली जगह रख के देख लो। सांझ के समय रख दो, सवेरे बर्तन में छोटे-छोटे मेंढ़क मिल जाएंगे। बात यह है कि इन्द्र देवता को मेंढ़क बहुत प्यारे हैं। वे जो रट लगते हैं, तो इन्द्र का जय-जयकार करते हैं।''

अथाई पर बैठे लोग मुंह ताक रहे थे, कि नावते जी अन्त में क्या कहते हैं।
नावता अन्त में बहुत आश्वासन के साथ बोला ''मेंढ़क-मेंढ़की का ब्याह करा दो। पानी न बरसे, तो मेरी नाक काट डालना।'' मेंढ़क-मेंढ़की का ब्याह! कुछ के ओठों पर हँसी झलकने को हुई,  परन्तु अनुभवी नावते की गम्भीर शक्ल देखकर हँसी उभर न पाई।
एक ने पूछा-''कैसे क्या होगा उसमें? मेंढ़की के ब्याह की विधि तो बतलाओ, दादा।''

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