कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
गोपाल पाषाण-मूर्ति-सा खड़ा था।
''खड़े देख क्या रहे हो? बेहोश हो गई है। पानी दो जल्दी!''-कैलाश ने गुस्से
में कहा।
''बेहोश हो गई है? ओह! कितने दिनों बाद बेहोश हुई है आज! पानी? पानी क्या
करोगे, कैलाश? तुम उसे होश में लाना चाहते हो? क्यों? मैं पूछता हूं,
क्यों? उसे होश में लाकर तुम उसे क्या दोगे?
गोपाल बक रहा था। कैलाश पानी की सुराही की तरफ लपका।
''खबरदार! जो कोई उसे होश में लाया। वह अब सुखी है, कम से कम कोई दुख नहीं
उसे। बधाई दो, कैलाश! बधाई दो! अम्मा से कह दो, शहनाई बजवाएं। उनकी बहू
बेहोश है, बेटा शादी करने जा रहा है। विवाह रचाओ। जल्दी करो। उसे होश न
आने पाए। इस समय वह दुखी नहीं। ह: ह: ह: ह:! बुझे दीप जलाओ, कैलाश! बुझे
दीप जलाओ!''
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