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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


''और, इन्हीं भेडों में से कुछ जब तुर्कों में जा मिलती हैं, तब उन्हें शेर बनते देर नहीं लगती।''

''आपका संकेत वाराणसी के तन्तुवायों की ओर है, जो अब म्लेच्छों के धर्म में चले गए हैं और जो हिन्दुओं को काफिर मान कर उनके सौ के मुकाबले में एक को काफी समझते हैं।''
''इसमें क्या शक है?''
''और माहव जी, सौ में से भी जो एक तलवार उठा सकता है, वह भी आपस की शत्रुता के  कारण मिलकर शत्रु से मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं है। वाराणसी पर तुर्कों का अधिकार होने पर महाराज जयचन्द के उत्तराधिकारी महाराज हरिश्चन्द्र अब भी संघर्ष करते रहे हैं। इधर, हमारे छोटे-बड़े क्षत्रिय सामन्तों का अपने ऊपर इतना कम विश्वास रह गया है, कि वे तुर्कों के सामने सिर झुकाने के लिए होड़ करने लगे हैं। पर यदि तुर्क इस तरह उन्हें सस्ते छोड़ दें, तो उनकी अपार सेना की लूट और खर्च के लिए धन कहां से आएगा? इसीलिए वे जहां भी धन-सम्पत्ति की सम्भावना देखते हैं, वहां आग-तलवार लेकर दौड़ पड़ते हैं। सबसे पहले उनकी नजर उन स्थानों पर जाती है, जहां अपार धन राशि जमा है।''

''शायद इसीलिए हमारा इलाका तुर्क सवारों के घोड़ों की खुरों से रौंदा नहीं गया, क्योंकि यहां वैसी अपार धन राशि की सम्भावना नहीं है।''

''पर धन राशि तो है! हमारे महाराज ने वाराणसी जाकर बड़ी-बड़ी भेंट तुर्क सिपहसालार को दी, लेकिन जान पड़ता है, वह इन्हें भी नहीं छोड़ेगा।''

''तो करना क्या है? क्या तारा और सिंहवाहिनी की पूजा तक ही हमको रहना चाहिए?''
''और अपने को इनके सामने तुर्क तलवारों द्वारा बलि चढ़वा कर, फिर इन्हें भी उनके हथौड़ों से चूर-चूर होने देना चाहिए?''
''भन्ते तथागत! बड़ी विडम्बना, नहीं, बेबसी है।''

''हमने स्वयं अपने को बेबस बना लिया है। हमारे लोगों को अब भी इतना ध्यान नहीं आया कि आपस की दुश्मनी को भूल कर, मिल जाएं और म्लेच्छों का मुकाबला करें। सभी सामन्त और राजा अपनी खानदानी दुश्मनी और स्वार्थ को इतनी जल्दी भूलने के लिए तैयार नहीं हैं। हमारे इस इलाके में क्षत्रियों का बोलबाला है। हमारे पूर्व और पश्चिम के कितने ही भागों में भूमिहार सामन्त हैं। भूमिहारों और क्षत्रियों में सांप और नेवले का सम्बन्ध है। जब तुर्कों के कृपापात्र बनने का सवाल आता है, तो ये एक-दूसरे से आगे बढ़ कर सिर झुकाने के लिए तैयार हो जाते हैं।''

भिक्षु तथागतश्री और पण्डित माहव की बातचीत से मालुम हो गया कि शिंशपा (सिसवा) नगरी और उसके उपनगर कर्नहट पर भारी संकट की सम्भावना है।

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