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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


*                      *                   *

कई वर्ष बीत गए। मामा यह सब कुछ भुला देंगे, यह सोच सुभद्रा भी उनकी प्रतीक्षा  करती-करती दूसरे लोक को चली गई। उसके अन्तिम दिनों के चित्र मदन के स्मृतिपटल पर प्राय: साकार हो उठते। अन्त में सुभद्रा को मामा और आम के पेड़ की बहुत याद आई, इसे मदन कैसे भूल सकता था?

सब जोड़-घटा कर मदन न जाने क्यों, भीतर से अनुभव करता कि मामा के प्रति उसने न्याय नहीं किया। वह उन्हें खोज कर उनसे क्षमा मांगना चाहता। पर फिर मामा कहीं न दीखे। सुभद्रा की बीमारी के अन्तिम दिनों में, दफ्तर से समय निकाल कर, न जाने कितनी बार उसने मामा की खोज में शहर की परिक्रमा कर डाली, क्योंकि सुभद्रा ने एक दिन क्षीण कंठ से कहा था कि वे यहीं-कहीं मन्दिर बनवा रहे थे-उसी के लिए यहां आकर ठहरे थे। फिर भी, मामा न मिले।

मदन उस समय ही उसका आशय समझ सका था। उसकी निस्तेज आंखों ने इस कथन से बहुत कुछ अधिक कह डाला था। मदन ने संतोष देने के लिए उससे कहा था-''तुम चिन्ता न करो, सुभद्रा! मैं उन्हें खोज लाऊंगा, उन्हें मना लूंगा, उनसे पैर पकड़ कर क्षमा मांग लूंगा।''  फिर भी, वह मामा को खोज कर न निकाल सका।

अन्त में, जब सुभद्रा का स्वर बहुत क्षीण हो गया था और कम से कम शब्दों में वह अपने को व्यक्त कर पाती थी, तब उसने कहा था-''मिलें, तो मामा को क्षमा कर देना...''

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