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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय ८-१४

प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के प्रादुर्भाव की कथा और उसकी महिमा

तदनन्तर कपिला नगरी के कालेश्वर, रामेश्वर आदि की महिमा बताते हुए सूतजी ने समुद्र के तटपर स्थित गोकर्णक्षेत्र के शिवलिंगों की महिमा का वर्णन किया। फिर महाबल नामक शिवलिंग का अद्भुत माहात्म्य सुनाकर अन्य बहुत-से शिवलिंगों की विचित्र माहाक्य-कथा का वर्णन करने के पश्चात् ऋषियों के पूछनेपर वे ज्योतिर्लिंगों का वर्णन करने लगे।

सूतजी बोले- ब्राह्मणो! मैंने सदगुरु से जो कुछसुना है? वह ज्योतिर्लिंगों का माहात्म्य तथा उनके प्राकट्य का प्रसंग अपनी बुद्धि के अनुसार संक्षेप से ही सुनाऊँगा। तुम सब लोग सुनो। मुने! ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहले सोमनाथ का नाम आता है; अत: पहले उन्हीं के माहात्म्य को सावधान होकर सुनो। मुनीश्वरो! महामना प्रजापति दक्ष ने अपनी अश्विनी आदि सत्ताईस कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ किया था। चन्द्रमा को स्वामी के रूप में पाकर वे दक्षकन्याएँ विशेष शोभा पाने लगीं तथा चन्द्रमा भी उन्हें पत्नी के रूपमें पाकर निरन्तर सुशोभित होने लगे। उन सब पत्नियों में भी जो रोहिणी नाम की पत्नी थी, एकमात्र वही चन्द्रमा को जितनी प्रिय थी, उतनी दूसरी कोई पत्नी कदापि प्रिय नहीं हुई। इससे दूसरी स्त्रियों को बड़ा दुःख हुआ। वे सब अपने पिता की शरण में गयीं। वहाँ जाकर उन्होंने जो भी दुःख था, उसे पिता को निवेदन किया। द्विजो! वह सब सुनकर दक्ष भी दुःखी हो गये और चन्द्रमा के पास आकर शान्तिपूर्वक बोले।

दक्ष ने कहा- कलानिधे! तुम निर्मल कुल में उत्पन्न हुए हो। तुम्हारे आश्रय में रहनेवाली जितनी स्त्रियाँ है उन सबके प्रति तुम्हारे मन में न्यूनाधिकभाव क्यों है? तुम किसी को अधिक और किसी को कम प्यार क्यों करते हो? अबतक जो किया, सो किया, अब आगे फिर कभी ऐसा विषमतापूर्ण बर्ताव तुम्हें नहीं करना चाहिये; क्योंकि उसे नरक देनेवाला बताया गया है।

सूतजी कहते हैं- महर्षियो! अपने दामाद चन्द्रमा से स्वयं ऐसी प्रार्थना करके प्रजापति दक्ष घर को चले गये। उन्हें पूर्ण निश्चय हो गया था कि अब फिर आगे ऐसा नहीं होगा। पर चन्द्रमा ने प्रबल भावी से विवश होकर उनकी बात नहीं मानी। वे रोहिणी में इतने आसक्त हो गये थे कि दूसरी किसी पत्नी का कभी आदर नहीं करते थे। इस बात को सुनकर दक्ष दुःखी हो फिर स्वयं आकर चन्द्रमा को उत्तम नीति से समझाने तथा न्यायोचित बर्ताव के लिये प्रार्थना करने लगे।

दक्ष बोले- चन्द्रमा! सुनो, मैं पहले अनेक बार तुमसे प्रार्थना कर चुका हूँ। फिर भी तुमने मेरी बात नहीं मानी। इसलिये आज शाप देता हूँ कि तुम्हें क्षय का रोग हो जाय।

सूतजी कहते हैं- दक्ष के इतना कहते ही क्षणभर में चन्द्रमा क्षयरोग से ग्रस्त हो गये। उनके क्षीण होते ही उस समय सब ओर महान् हाहाकार मच गया। सब देवता और ऋषि कहने लगे कि 'हाय! हाय! अब क्या करना चाहिये, चन्द्रमा कैसे ठीक होंगे?' मुने! इस प्रकार दुःख में पड़कर वे सब लोग विह्वल हो गये। चन्द्रमा ने इन्द्र आदि सब देवताओं तथा ऋषियों को अपनी अवस्था सूचित की। तब इन्द्र आदि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषि ब्रह्माजी की शरणमें गये।

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