ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
0 |
भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
तेजोमयो द्युतिधरो लोकानामग्रणीरणु:।
शुचिस्मित: प्रसन्नात्मा दुर्जेयो दुरतिक्रम:।।१०६।।
८१० तेजोमयो द्युतिधरः - तेजस्वी और कान्तिमान्, ८११ लोकानामग्रणीः - सम्पूर्ण जगत् के लिये अग्रगण्य देवता अथवा जगत् को आगे बढ़ानेवाले, ८१२ अणु: - अत्यन्त सूक्ष्म, ८१३ शुचिस्मित: - पवित्र मुसकानवाले, ८१४ प्रसन्नात्मा -हर्षभरे हृदयवाले, ८१५ दुर्जेय: - जिन पर विजय पाना अत्यन्त कठिन है ऐसे, ८१६ दुरतिक्रम: - दुर्लङ्घ्य।।१०६।।
ज्योतिर्मयो जगन्नाथो निराकारो जलेश्वर:।
तुम्बवीणो महाकोपो विशोक: शोकनाशन:।।१०७।।
८१७ ज्योतिर्मयः - तेजोमय, ८१८ जगन्नाथः - विश्वनाथ, ८१९ निराकार: - आकाररहित परमात्मा, ८२० जलेश्वर: - जल के स्वामी, ८२१ तुम्बवीणः - तूँबी की वीणा बजानेवाले, ८२२ महाकोपः - संहार के समय महान् क्रोध करने वाले, ८२३ विशोक: - शोकरहित, ८२४ शोकनाशनः - शोक का नाश करनेवाले।।१०७।।
त्रिलोकपस्त्रिलोकेश: सर्वशुद्धिरधोक्षज:।
अव्यक्तलक्षणो देवो व्यक्ताव्यक्तो विशाम्पति:।।१०८।।
८२५ त्रिलोकपः - तीनों लोकों का पालन करने वाले, ८२६ त्रिलोकेशः - त्रिभुवन के स्वामी, ८२७ सर्वशुद्धिः - सबकी शुद्धि करनेवाले, ८२८ अधोक्षजः - इन्द्रियों और उनके विषयों से अतीत, ८२९ अव्यक्तलक्षणो देवः - अव्यक्त लक्षणवाले देवता, ८३० व्यक्ताव्यक्तः - स्थूल-सूक्ष्म रूप, ८३१ विशाम्पति: - प्रजाओं के पालक।।१०८।।
वरशीलो वरगुण: सारो मानधनो मय:।
ब्रह्मा विष्णु: प्रजापालो हंसो हंसगतिर्वय:।।१०९।।
८३२ वरशील: - श्रेष्ठ स्वभाव वाले, ८३३ वरगुणः - उत्तम गुणोंवाले, ८३४ सार: - सारतत्त्व, ८३५ मानधनः - स्वाभिमान के धनी, ८३६ मया - सुखस्वरूप, ८३७ ब्रह्मा - सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, ८३८ विष्णु: प्रजापाल: - प्रजापालक विष्णु, ८३९ हंसः - सूर्यस्वरूप, ८४० हंसगतिः - हंस के समान चाल वाले, ८४१ वयः - गरुड़ पक्षी।।१०९।।
वेधा विधाता धाता च स्रष्टा हर्ता चतुर्मुख:।
कैलासशिखरावासी सर्वावासी सदागति:।।११०।।
८४२ वेधा विधाता धाता - ब्रह्मा, भ्राता और विधाता नामक देवतास्वरूप, ८४३ सृष्टा - सृष्टिकर्ता, ८४४ हर्ता - संहारकारी, ८४५ चतुर्मुखः - चारमुखवाले ब्रह्मा, ८४६ कैलासशिखरावासी - कैलास के शिखर पर निवास करने वाले, ८४७ सर्वावासी - सर्वव्यापी, ८४८ सदागति: - निरन्तर गतिशील वायुदेवता ।।११०।।
|