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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय  ५-७

ऋषिका पर भगवान् शिवकी कृपा, एक असुरसे उसके धर्मकी रक्षा करके उसके आश्रममें नन्दिकेश नाम से निवास करना और वर्ष में एक दिन गंगा का भी वहाँ आना

तदनन्तर श्रीसूतजी ने जब बहुत-से शिवलिंगों के कथा प्रसंग सुना दिये, तब ऋषियों ने पूछा- 'महामते सूतजी! वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन गंगा जी नर्मदा में कैसे आयीं? इसका विशेषरूप से वर्णन कीजिये। वहाँ महादेवजी का नाम नन्दिकेश्वर कैसे हुआ? इस बात को भी प्रसन्नतापूर्वक बताइये।'

सूतजी ने कहा- महर्षियो! एक ब्राह्मणी थी, जिसका नाम ऋषिका था। वह किसी ब्राह्मण की पुत्री थी और एक ब्राह्मण को ही विधिपूर्वक ब्याही गयी थी। विप्रवरो! यद्यपि वह द्विजपत्नी उत्तम व्रत का पालन करनेवाली थी, तथापि अपने पूर्वजन्म के किसी अशुभ कर्म के प्रभाव से 'बाल-वैधव्य' को प्राप्त हो गयी। तब वह ब्राह्मण पत्नी ब्रह्मचर्यव्रत के पालन में तत्पर हो पार्थिवपूजनपूर्वक अत्यन्त कठोर तपस्या करने लगी। उस समय अवसर पाकर मूढ़ नाम से प्रसिद्ध एक दुष्ट और बलवान् असुर, जो बड़ा मायावी था, कामबाण से पीड़ित होकर वहाँ गया। उस अत्यन्त सुन्दरी कामिनी को तपस्या करती देख वह असुर उसे नाना प्रकार के लोभ दिखाता हुआ उसके साथ सम्भोग की याचना करने लगा। मुनीश्वरो! परंतु उत्तम व्रत का पालन करने तथा शिव के ध्यान में तत्पर रहनेवाली वह साध्वी नारी कामभाव से उसपर दृष्टि न डाल सकी। तपस्या में लगी हुई उस ब्राह्मणी ने उस असुर का सम्मान नहीं किया; क्योंकि वह अत्यन्त तपोनिष्ठ और शिवध्यानपरायणा थी। उस कृशांगी युवती से तिरस्कृत हो उस दैत्यराज मूढ़ ने उसके ऊपर क्रोध प्रकट किया और फिर अपना विकट रूप उसे दिखाया। इसके बाद उस दुष्टात्मा ने भयदायक दुर्वचन कहा और उस ब्राह्मणपत्नी को बारंबार त्रास देना आरम्भ किया। उस समय वह उसके भय से थर्रा उठी और अनेक बार स्नेहपूर्वक शिव-शिव की पुकार करने लगी। उस तन्वंगी द्विजपत्नी ने भगवान् शिव का पूर्णतया आश्रय ले रखा था। शिव का नाम जपने वाली वह नारी अत्यन्त विह्वल हो अपने धर्म की रक्षा के लिये भगवान् शम्भु की ही शरण में गयी।

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