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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


उष्णो गृहपति: कृष्ण: समर्थोऽनर्थनाशन:।
अधर्मशत्रुरज्ञेय: पुरुहूत: पुरुश्रुत:।।७१।।

५५७ उष्णः - हलाहल विष की गर्मी से उष्णतायुक्त, ५५८ गृहपतिः - समस्त ब्रह्माण्डरूपी गृह के स्वामी, ५५९ कृष्ण: - सच्चिदानन्दस्वरूप, ५६० समर्थ: - सामर्थ्यशाली, ५६१ अनर्थनाशनः - अनर्थ का नाश करनेवाले, ५६२ अधर्मशत्रु: - अधर्मनाशक, ५६३ अज्ञेयः - बुद्धि की पहुँच से परे अथवा जानने में न आनेवाले, ५६४ पुरुहूत: पुरुश्रुतः - बहुत-से नामों द्वारा पुकारे और सुने जानेवाले।।७१।।

ब्रह्मगर्भो बृहद्गर्भो धर्मधेनुर्धनागम:।
जगद्धितैषी सुगत: कुमार: कुशलागम:।।७२।।

५६५ ब्रह्मगर्भः - ब्रह्मा जिनके गर्भस्थ शिशु के समान हैं, ऐसे, ५६६ वृहद्‌गर्भः - विश्वब्रह्माण्ड प्रलयकाल में जिनके गर्भ में रहता है ऐसे, ५६७ धर्मधेनुः - धर्मरूपी वृषभ को उत्पन्न करने के लिये धेनुस्वरूप, ५६८ धनागमः - धन की प्राप्ति करानेवाले, ५६९ जगद्धितैषी - समस्त संसार का हित चाहनेवाले, ५७० सुगतः - उत्तम-ज्ञान से-सम्पन्न अथवा बुद्धस्वरूप, ५७१ कुमार: - कार्तिकेय रूप, ५७२ कुशलागम: - कल्याणदाता।।७२।।

हिरण्यवर्णो ज्योतिष्मान्नानाभूतरतो ध्वनि:।
अरागो नयनाध्यक्षो विश्वामित्रो धनेश्वर:।।७३।।

५७३ हिरण्यवर्णो ज्योतिष्मान् - सुवर्ण के समान गौरवर्णवाले तथा तेजस्वी, ५७४ नाना भूतरत: - नाना प्रकार के भूतों के साथ क्रीड़ा करने वाले, ५७५ ध्वनि: - नादस्वरूप, ५७६ अराग: - आसक्तिशून्य, ५७७ नयनाध्यक्ष: - नेत्रों में द्रष्टारूप से विद्यमान, ५७८ विश्वामित्र: - सम्पूर्ण जगत् के प्रति मैत्री भावना रखनेवाले मुनिस्वरूप, ५७९ धनेश्वर: - धन के स्वामी कुबेर।।७३।।

ब्रह्मज्योतिर्वसुधामा महाज्योतिरनुत्तम:।
मातामहो मातरिश्वा नभस्वान्नागहारधृक्।।७४।।

५८० ब्रह्मज्योति: - ज्योतिस्वरूप ब्रह्म, ५८१ वसुधामा - सुवर्ण और रत्नों के तेज से प्रकाशित अथवा वसुधास्वरूप, ५८२ महाज्योतिरनुत्तम: - सूर्य आदि ज्योतियों के प्रकाशक सर्वोत्तम महाज्योतिःस्वरूप, ५८३ मातामह: - मातृकाओं के जन्मदाता होने के कारण मातामह, ५८४ मातरिश्वा नभस्वान् - आकाश में विचरनेवाले वायुदेव, ५८५ नागहारधृक् - सर्पमय हार धारण करनेवाले।।७४।।

पुलस्त्य: पुलहोऽगत्त्वो जातूकर्ण्य: पराशर:।
निरावरणनिर्वारो वैरञ्च्यो विष्टरश्रवा:।।७५।।

५८६ पुलस्त्य: - पुलस्त्य नामक मुनि, ५८७ पुलह: - पुलह नामक ऋषि, ५८८ अगस्त्य: - कुम्भजन्मा अगस्त्य ऋषि, ५८९ जातूकर्ण्य: - इसी नाम से प्रसिद्ध मुनि, ५९० पराशर: -शक्ति के पुत्र तथा व्यासजी के पिता मुनिवर पराशर, ५९१ निरावरणनिर्वार: - आवरणशून्य तथा अवरोधरहित, ५९२ वैरञ्च्य: - ब्रह्माजी के पुत्र नीललोहित रुद्र, ५९३ विष्टरश्रवा: - विस्तृत यशवाले विष्णुस्वरूप।।७५।।

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