ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
स्पष्टाक्षरो बुधो मन्त्र: समान: सारसम्भव:।
युगादिकृद्युगावर्तो गम्भीरो वृषवाहन:।।४६।।
३६१ स्पष्टाक्षर: - ओंकाररूप स्पष्ट अक्षरवाले, ३६२ बुध: - ज्ञानवान्, ३६३ मन्त्र: - ऋक्, साम और यजुर्वेद के मन्त्रस्वरूप, ३६४ समान: - सबके प्रति समान भाव रखनेवाले, ३६५ सारसम्भव: - संसार-सागर से पार होने के लिये नौकारूप, ३६६ युगादिकृद्युगावर्त: - युगादि का आरम्भ करनेवाले तथा चारों युगों को चक्र की तरह घुमानेवाले, ३६७ गम्भीर: - गाम्भीर्य से युक्त, ३६८ वृषवाहन: - नन्दी नामक वृषभ पर सवार होनेवाले।।४६।।
इष्टोऽविशिष्ट: शिष्टेष्ट: सुलभ: सारशोधन:।
तीर्थरूपस्तीर्थनामा तीर्थदृश्यस्तु तीर्थद:।।४७।।
३६१ इष्ट: - परमानन्दस्वरूप होने से सर्वप्रिय, ३७० अविशिष्ट: - सम्पूर्ण विशेषणों से रहित, ३७१ शिष्टेष्ट: - शिष्ट पुरूषों के इष्टदेव, ३७२ सुलभ: - अनन्यचित्त से निरन्तर स्मरण करनेवाले भक्तों के लिये सुगमता से प्राप्त होनेयोग्य, ३७३ सारशोधन: - सारतत्त्व की खोज करनेवाले, ३७४ तीर्थरूप: - तीर्थस्वरूप, ३७५ तीर्थनामा - तीर्थनामधारी अथवा जिनका नाम भवसागर से पार लगानेवाला है ऐसे, ३७६ तीर्थदृश्य: - तीर्थसेवन से अपने स्वरूप का दर्शन कराने वाले अथवा गुरु-कृपा से प्रत्यक्ष होनेवाले, ३७७ तीर्थद: - चरणोदक स्वरूप तीर्थ को देनेवाले।।४७।।
अपांनिधिरधिष्ठानं दुर्जयो जयकालवित्।
प्रतिष्ठित: प्रमाणज्ञो हिरण्यकवचो हरि:।।४८।।
३७८ अपांनिधि: - जल के निधान समुद्ररूप, ३७९ अधिष्ठानम् - उपादान-कारण रूप से सब भूतों के आश्रय अथवा जगत्-रूप प्रपंच के अधिष्ठान, ३८० दुर्जय: - जिनको जीतना कठिन है ऐसे, ३८१ जयकालवित् - विजय के अवसर को समझनेवाले, ३८२ प्रतिष्ठित: - अपनी महिमा में स्थित, ३८३ प्रमाणज्ञ: - प्रमाणों के ज्ञाता, ३८४ हिरण्यकवच: - सुवर्णमय कवच धारण करनेवाले, ३८५ हरि: - श्रीहरि स्वरूप।।४८।।
विमोचन: सुरगणो विद्येशो विन्दुसंश्रय:।
बालरूपोऽबलोन्मत्तोऽविकर्ता गहनो गुह:।।४९।।
३८६ विमोचन: - संसारबन्धन से सदा के लिये छुड़ा देनेवाले, ३८७ सुरगण: - देवसमुदायरूप, ३८८ विद्येश: - सभी विद्याओं के स्वामी, ३८९ विन्दुसंश्रय: - बिन्दुरूप प्रणव के आश्रय, ३९० बालरूप: - बालक का रूप धारण करनेवाले, ३९१ अबलोन्मत्त: - बल से उन्मत्त न होनेवाले, ३९२ अविकर्ता - विकाररहित, ३९३ गहन: - दुर्बोधस्वरूप या अगम्य, ३९४ गुह: - माया से अपने यथार्थ स्वरूप को छिपाये रखने वाले ।।४९।।
करणं कारणं कर्ता सर्वबन्धविमोचन:।
व्यवसायो व्यवस्थान: स्थानदो जगदादिज:।।५०।।
३९५ करणम् - संसार की उत्पत्ति के सबसे बड़े साधन, ३९६ कारणम् - जगत् के उपादान और निमित्त कारण, ३९७ कर्ता - सबके रचयिता, ३९८ सर्वबन्धविमोचन: - सम्पूर्ण बन्धनों से छुड़ानेवाले, ३११ व्यवसाय: - निश्चयात्मक ज्ञानस्वरूप, ४०० व्यवस्थान: - सम्पूर्ण जगत् की व्यवस्था करनेवाले, ४०१ स्थानद: - ध्रुव आदि भक्तों को अविचल स्थिति प्रदान कर देनेवाले, ४०२ जगदादिज: - हिरण्यगर्भरूप से जगत् के आदि में प्रकट होनेवाले।।५०।।
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