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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

वैश्यपति ने कहा- देवेश्वर शंकर! मेरी रक्षा कीजिये। कल्याणकारी त्रिलोकीनाथ! दुष्टहन्ता भक्तवत्सल शिव! हमें इस दुष्ट से बचाइये। देव! अब आप ही मेरे सर्वस्व हैं; प्रभो! मंत आपका हूँ, आपके अधीन हूँ और आप ही सदा मेरे जीवन एवं प्राण हैं।

सूतजी कहते हैं- सुप्रिय के इस प्रकार प्रार्थना करनेपर भगवान् शंकर एक विवर से निकल पड़े। उनके साथ ही चार दरवाजों का एक उत्तम मन्दिर भी प्रकट हो गया। उसके मध्यभाग में अद्भुत ज्योतिर्मय शिवलिंग प्रकाशित हो रहा था। उसके साथ शिव-परिवार के सब लोग विद्यमान थे। सुप्रिय ने उनका दर्शन करके पूजन किया, पूजित होने पर भगवान् शम्भु ने प्रसन्न हो स्वयं पाशुपतास्त्र लेकर प्रधान-प्रधान राक्षसों, उनके सारे उपकरणों तथा सेवकों को भी तत्काल ही नष्ट कर दिया और उन दुष्टहन्ता शंकर ने अपने भक्त सुप्रिय की रक्षा की। तत्पश्चात् अद्भुत लीला करनेवाले और लीला से ही शरीर धारण करनेवाले शम्भु ने उस वन को यह वर दिया कि आज से इस वन में सदा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र- इन चारों वर्णों के धर्मों का पालन हो। यहाँ श्रेष्ठ मुनि निवास करें और तमोगुणी राक्षस इसमें कभी न रहें। शिवधर्म के उपदेशक, प्रचारक और प्रवर्तक लोग इसमें निवास करें!

सूतजी कहते हैं- इसी समय राक्षसी दारुका ने दीनचित्त से देवी पार्वती की स्तुति की। देवी पार्वती प्रसन्न हो गयीं और बोलीं- 'बताओ, तेरा क्या कार्य करूँ?'

दारुका ने कहा- 'मेरे वंश की रक्षा कीजिये?'

देवी बोलीं- 'मैं सच कहती हूँ, तेरे कुल की रक्षा करूँगी।' ऐसा कहकर देवी भगवान् शिव से बोलीं- 'नाथ! आपकी यह बात युग के अन्त में सच्ची होगी। तबतक तामसी सृष्टि भी रहे, ऐसा मेरा विचार है। मैं भी आपकी ही हूँ और आपके ही आश्रय में रहती हूँ। अत: मेरी बात को भी प्रमाणित (सत्य) कीजिये। यह राक्षसी दारुका देवी है-मेरी ही शक्ति है और राक्षसियों में बलिष्ठ है। अत: यही राक्षसों के राज्य का शासन करे। ये राक्षस-पत्नियाँ जिन पुत्रों को पैदा करेंगी, वे सब मिलकर इस वन में निवास करें, ऐसी मेरी इच्छा है।

शिव बोले- प्रिये! यदि तुम ऐसी बात कहती हो तो मेरा यह वचन सुनो। मैं भक्तों का पालन करने के लिये प्रसन्नतापूर्वक इस वन में रहूँगा। जो पुरुष यहाँ वर्णधर्म के पालन में तत्पर हो प्रेमपूर्वक मेरा दर्शन करेगा, वह चक्रवर्ती राजा होगा। कलियुग के अन्त और सत्ययुग के आरम्भ में महासेन का पुत्र वीरसेन राजाओं का भी राजा होगा। वह मेरा भक्त और अत्यन्त पराक्रमी होगा और यहाँ आकर मेरा दर्शन करेगा। दर्शन करते ही वह चक्रवर्ती सम्राट् हो जायगा।

सूतजी कहते हैं- ब्राह्मणो! इस प्रकार बड़ी-बड़ी लीलाएँ करनेवाले वे दम्पति परस्पर हास्ययुक्त वार्तालाप करके स्वयं वहाँ स्थित हो गये। ज्योतिर्लिंगस्वरूप महादेवजी वहाँ नागेश्वर कहलाये और शिवा देवी नागेश्वरी के नाम से विख्यात हुईं। वे दोनों ही सत्पुरुषों को प्रिय हैं।

इस प्रकार ज्योतियों के स्वामी नागेश्वर नामक महादेवजी ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। वे तीनों लोकों की सम्पूर्ण कामनाओं को सदा पूर्ण करनेवाले हैं। जो प्रतिदिन आदरपूर्वक नागेश्वर के प्रादुर्भाव का यह प्रसंग सुनता है, वह बुद्धिमान् मानव महापातकों का नाश करनेवाले सम्पूर्ण मनोरथों को प्राप्त लेता है।

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