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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

सूतजी कहते हैं- ब्राह्मणो! महात्मा गणेश ने ऋषियों से जो यह बात कही, वह यद्यपि उनके लिये हितकर थी, तो भी उन्होंने इसे नहीं स्वीकार किया। तब भक्तों के अधीन होने के कारण उन शिवकुमार ने कहा- 'तुमलोगों ने जिस वस्तु के लिये प्रार्थना की है उसे मैं अवश्य करूँगा। पीछे जो होनहार होगी, वह होकर ही रहेगी।' ऐसा कहकर वे अन्तर्धान हो गये। मुनीश्वरो! उसके बाद उन दुष्ट ऋषियों के प्रभाव से तथा उन्हें प्राप्त हुए वर के कारण जो घटना घटित हुई, उसे सुनो। वहाँ गौतम के खेत में जो धान और जौ थे, उनके पास गणेशजी एक दुर्बल गाय बनकर गये। दिये हुए वर के कारण वह गौ काँपती हुई वहाँ जाकर धान और जौ चरने लगी। इसी समय दैववश गौतम जी वहाँ आ गये। वे दयालु ठहरे, इसलिये मुट्ठीभर तिनके लेकर उन्हींसे उस गौ को हाँकने लगे। उन तिनकों का स्पर्श होते ही वह गौ पृथ्वी पर गिर पड़ी और ऋषि के देखते-देखते उसी क्षण मर गयी।

वे दूसरे-दूसरे (द्वेषी) ब्राह्मण और उनकी दुष्ट स्त्रियाँ वहाँ छिपे हुए सब कुछ देख रहे थे। उस गौ के गिरते ही वे सब-के-सब बोल उठे- 'गौतम ने यह क्या कर डाला?' गौतम भी आश्चर्यचकित हो, अहल्या को बुलाकर व्यथित हृदय से दुःख- पूर्वक बोले- 'देवि! यह क्या हुआ, कैसे हुआ? जान पड़ता है परमेश्वर मुझ पर कुपित हो गये हैं। अब क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? मुझे हत्या लग गयी।'

इसी समय ब्राह्मण और उनकी पत्नियाँ गौतम को डाँटने और दुर्वचनों द्वारा अहल्या को पीड़ित करने लगीं। उनके दुर्बुद्धि शिष्य और पुत्र भी गौतम को बारंबार फटकारने और धिक्कारने लगे।

ब्राह्मण बोले- अब तुम्हें अपना मुँह नहीं दिखाना चाहिये। यहाँ से जाओ, जाओ। गोहत्यारे का मुँह देखनेपर तत्काल वस्त्र- सहित स्नान करना चाहिये। जबतक तुम इस आश्रम में रहोगे, तब तक अग्निदेव और पितर हमारे दिये हुए किसी भी हव्य-कव्य को ग्रहण नहीं करेंगे। इसलिये पापी गोहत्यारे! तुम परिवार सहित यहाँ से अन्यत्र चले जाओ। विलम्ब न करो।

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