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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

अध्याय ५

शिवजी द्वारा दसवें से लेकर अठ्टाईसवें योगेश्वरावतारों का वर्णन

शिवजी कहते हैं- ब्रह्मन्! दसवें द्वापरमें त्रिधामा नाम के मुनि व्यास होंगे। वे हिमालय के रमणीय शिखर पर्वतोत्तम भृगुतुंग पर निवास करेंगे। वहाँ भी मेरे श्रुतिविदित चार पुत्र होंगे। उनके नाम होंगे- भृंग, बलबन्धु, नरामित्र और तपोधन केतुश्रंग

ग्यारहवें द्वापर में जब त्रिवृत नामक व्यास होंगे, तब मैं कलियुग में गंगा-द्वार में तप नाम से प्रकट होऊँगा। वहाँ भी मेरे लम्बोदर, लम्बाक्ष, केशलख और प्रलम्बक नामक चार दृढ़व्रती पुत्र होंगे।

बारहवीं चतुर्युगी के द्वापरयुग में शततेजा नाम के वेदव्यास होंगे। उस समय मैं द्वापर के समाप्त होनेपर कलियुग में हेमकंचुक में जाकर अत्रि नाम से अवतार लूँगा और व्यास की सहायता के लिये निवृत्तिमार्ग को प्रतिष्ठित करूँगा। महामुने! वहाँ भी मेरे सर्वज्ञ, समबुद्धि, साध्य और शर्व नामक चार उत्तम योगी पुत्र होंगे।

तेरहवें द्वापरयुग में जब धर्मस्वरूप नारायण व्यास होंगे, तब मैं पर्वतश्रेष्ठ गन्धमादन पर वालखिल्याश्रम में महामुनि बलि नाम से उत्पन्न हूँगा। वहाँ भी मेरे सुधामा, काश्यप, वसिष्ठ और विरजा नामक चार सुन्दर पुत्र होंगे।

चौदहवीं चतुर्युगी के द्वापरयुग में जब रक्ष नामक व्यास होंगे, उस समय मैं अंगिरा के वंश में गौतम नाम से उत्पन्न होऊँगा। उस कलियुग में भी अत्रि, वशद, श्रवण और श्नविष्कट मेरे पुत्र होंगे।

पंद्रहवें द्वापर में जब त्रय्यारुणि व्यास होंगे, उस समय मैं हिमालय के पृष्ठ-भाग में स्थित वेदशीर्ष नामक पर्वतपर सरस्वती के उत्तरतट का आश्रय ले वेदशिरा नाम से अवतार ग्रहण करूँगा। उस समय महापराक्रमी वेदशिर ही मेरा अस्त्र होगा। वहाँ भी मेरे चार दृढ़ पराक्रमी पुत्र होंगे। उनके नाम होंगे-कुणि, कुणिबाहु, कुशरीर और कुनेत्रक।

सोलहवें द्वापरयुग में जब व्यास का नाम देव होगा, तब मैं योग प्रदान करने के लिये परम पुण्यमय गोकर्णवन में गोकर्ण नाम से प्रकट होऊँगा। वहाँ भी मेरे काश्यप, उशना, च्यवन और बृहस्पति नामक चार पुत्र होंगे। वे जल के समान निर्मल और योगी होंगे तथा उसी मार्ग के आश्रय से शिवलोक को प्राप्त हो जायँगे।

सत्रहवीं चतुर्युगी के द्वापर युग में देवकृतंजय व्यास होंगे, उस समय मैं हिमालय के अत्यन्त ऊँचे एवं रमणीय शिखर महालय पर्वतपर गुहावासी नाम से अवतार धारण करूँगा; क्योंकि हिमालय शिवक्षेत्र कहलाता है। वहीं उतथ्य, वामदेव, महायोग और महाबल नाम के मेरे पुत्र भी होंगे।

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