ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...
अर्जुन बोले- देवाधिदेव महादेव! आप तो बड़े कृपालु तथा भक्तों के कल्याणकर्ता हैं। सर्वेश! आपको मेरा अपराध क्षमा कर देना चाहिये। इस समय आपने अपने रूप को छिपाकर यह कौन-सा खेल किया है? आपने तो मुझे छल लिया। प्रभो! आप स्वामी के साथ युद्ध करनेवाले मुझको धिक्कार है!
नन्दीश्वरजी कहते हैं- मुने! इस प्रकार पाण्डुपुत्र अर्जुन को महान् पश्चात्ताप हुआ। तत्पश्चात् वे शीघ्र ही महाप्रभु शंकरजी के चरणों में लोट गये। यह देखकर भक्तवत्सल महेश्वर का चित्त प्रसन्न हो गया। तब वे अर्जुन को अनेकों प्रकार से आश्वासन देकर यों बोले।
शंकरजी ने कहा- पार्थ! तुम तो मेरे परम भक्त हो, अत: खेद न करो। यह तो मैंने आज तुम्हारी परीक्षा लेने के लिये ऐसी लीला रची थी, इसलिये तुम शोक त्याग दो।
नन्दीश्वरजी कहते हैं- मुने! यों कहकर भगवान् शिव ने अपने दोनों हाथों से पकड़कर अर्जुन को उठा लिया और अपने तथा गणों के समक्ष उनकी लाज का निवारण किया। फिर भक्तवत्सल भगवान् शंकर वीरों में मान्य पाण्डुपुत्र अर्जुन को सब तरह से हर्ष प्रदान करते हुए प्रेमपूर्वक बोले।
शिवजीने कहा- पाण्डवों में श्रेष्ठ अर्जुन! मैं तुमपर परम प्रसन्न हूँ, अत: अब तुम वर माँगो। इस समय तुमने जो मुझपर प्रहार एवं आघात किया है उसे मैंने अपनी पूजा मान लिया है। साथ ही यह सब तो मैंने अपनी इच्छा से किया है। इसमें तुम्हारा अपराध ही क्या है। अत: तुम्हारी जो लालसा हो, वह माँग लो; क्योंकि मेरे पास कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो तुम्हारे लिये अदेय हो। यह जो कुछ हुआ है वह शत्रुओं में तुम्हारे यश और राज्य की स्थापना के लिये अच्छा ही हुआ है। तुम्हें इसका दुःख नहीं मानना चाहिये। अब तुम अपनी सारी घबराहट छोड़ दो।
नन्दीश्वरजी कहते हैं- मुने! भगवान् शंकर के यों कहने पर अर्जुन भक्तिपूर्वक सावधानी से खड़े होकर शंकरजी से बोले।
अर्जुन ने कहा- 'शम्भो! आप तो बड़े उत्तम स्वामी हैं आपको भक्त बहुत प्रिय हैं। देव! भला, मैं आपकी करुणा का क्या वर्णन कर सकता हूँ। सदाशिव! आप तो बड़े कृपालु हैं।' यों कहकर अर्जुन ने महाप्रभु शंकर की सद्भक्तियुक्त एवं वेदसम्मत स्तुति आरम्भ की।
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