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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

अध्याय ३०

भगवान् शिव के अवधूतेश्वरावतार की कथा और उसकी महिमा का वर्णन

नन्दीश्वर कहते हैं- सनत्कुमार! अब तुम परमेश्वर शिव के अवधूतेश्वर नामक अवतार का वर्णन सुनो, जिसने इन्द्र के घमंड को चूर-चूर कर दिया था। पहले की बात है इन्द्र सम्पूर्ण देवताओं तथा बृहस्पतिजी को साथ लेकर भगवान् शिव का दर्शन करने के लिये कैलास पर्वत पर गये। उस समय बृहस्पति और इन्द्र के शुभागमन की बात जानकर भगवान् शंकर उन दोनों की परीक्षा लेने के लिये अवधूत बन गये। उनके शरीर पर कोई वस्त्र नहीं था। वे प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी होने के कारण महाभयंकर जान पड़ते थे। उनकी आकृति बड़ी सुन्दर दिखायी देती थी। वे राह रोककर खड़े थे। बृहस्पति और इन्द्र ने शिव के समीप जाते समय देखा, एक अद्भुत शरीरधारी पुरुष रास्ते के बीच में खड़ा है। इन्द्र को अपने अधिकार पर बड़ा गर्व था। इसलिये वे यह न जान सके कि ये साक्षात् भगवान् शंकर हैं। उन्होंने मार्ग में खड़े हुए पुरुष से पूछा- 'तुम कौन हो? इस नग्न अवधूत वेश में कहाँ से आये हो? तुम्हारा नाम क्या है? सब बातें ठीक-ठीक बताओ। देर न करो। भगवान् शिव अपने स्थान पर हैं या इस समय कहीं अन्यत्र गये हैं? मैं देवताओं तथा गुरुजी के साथ उन्हीं के दर्शनके लिये जा रहा हूँ।'

इन्द्र के बारंबार पूछने पर भी महान् कौतुक करने वाले अहंकारहारी महायोगी त्रिलोकीनाथ शिव कुछ न बोले। चुप ही रहे। तब अपने ऐश्वर्य का घमंड रखनेवाले देवराज इन्द्र ने रोष में आकर उस जटाधारी पुरुष को फटकारा और इस प्रकार कहा।

इन्द्र बोले- अरे मूढ़! दुर्मते! तू बार-बार पूछने पर भी उत्तर नहीं देता? अत: तुझे वज्र से मारता हूँ। देखूँ कौन तेरी रक्षा करता है।

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