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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

रात में जंगली क्रूर एवं हिंसक पशु उसे पीड़ा देने लगे। उसने भी यथाशक्ति उनसे बचने के लिये महान् यत्न किया। इस तरह यत्न करता हुआ वह भील बलवान् होकर भी प्रारब्ध प्रेरित हिंसक पशुओं द्वारा बलपूर्वक खा लिया गया। प्रातःकाल उठकर जब यति ने देखा कि हिंसक पशुओं ने वनवासी भीलको खा डाला है तब उन्हें बड़ा दुःख हुआ। संन्यासी को दुःखी देख भीलनी दुःख से व्याकुल होनेपर भी धैर्यपूर्वक उस दुःख को दबाकर यों बोली-'स्वामीजी! आप दुःखी किसलिये हो रहे हैं? इन भीलराज का तो इस समय कल्याण ही हुआ। ये धन्य और कृतार्थ हो गये, जो इन्हें ऐसी मृत्यु प्राप्त हुई। मैं चिता की आग में जलकर इनका अनुसरण करूँगी। आप प्रसन्नतापूर्वक मेरे लिये एक चिता तैयार कर दें; क्योंकि स्वामी का अनुसरण करना स्त्रियों के लिये सनातनधर्म है।' उसकी बात सुनकर संन्यासी जी ने स्वयं चिता तैयार की और भीलनी ने अपने धर्म के अनुसार उसमें प्रवेश किया। इसी समय भगवान् शंकर अपने साक्षात्स्वरूप से उसके सामने प्रकट हो गये और उसकी प्रशंसा करते हुए बोले- 'तुम धन्य हो, धन्य हो। मैं तुमपर प्रसन्न हूँ। तुम इच्छानुसार वर माँगो। तुम्हारे लिये मुझे कुछ भी अदेय नहीं है।'

भगवान् शंकर का यह परमानन्ददायक वचन सुनकर भीलनी को बड़ा सुख मिला। वह ऐसी विभोर हो गयी कि उसे किसी भी बात की सुध नहीं रही। उसकी उस अवस्था को लक्ष्य करके भगवान् शंकर और भी प्रसन्न हुए और उसके न माँगने पर भी उसे वर देते हुए बोले- 'मेरा जो यतिरूप है यह भावी जन्म में हंसरूप से प्रकट होगा और प्रसन्नतापूर्वक तुम दोनों का परस्पर संयोग करायेगा। यह भील निषधदेश की उत्तम राजधानी में राजा वीरसेन का श्रेष्ठ पुत्र होगा। उस समय नल के नाम से इसकी ख्याति होगी और तुम विदर्भ नगर में भीमराज की पुत्री दमयन्ती होओगी। तुम दोनों मिलकर राजभोग भोगने के पश्चात् वह मोक्ष प्राप्त करोगे, जो बड़े-बड़े योगीश्वरों के लिये भी दुर्लभ है।'

नन्दीश्वर कहते हैं- मुने! ऐसा कहकर भगवान् शिव उस समय लिंगरूप में स्थित हो गये। वह भील अपने धर्म से विचलित नहीं हुआ था, अत: उसी के नामपर उस लिंग को 'अचलेश' संज्ञा दी गयी। दूसरे जन्म में वह आहुक नामक भील नैषध नगर में वीरसेन का पुत्र हो महाराज नल के नाम से विख्यात हुआ और आहुका नाम की भीलनी विदर्भ नगर में राजा भीम की पुत्री दमयन्ती हुई और वे यतिनाथ शिव वहाँ हंसरूप में प्रकट हुए। उन्होंने दमयन्ती का नल के साथ विवाह कराया। पूर्वजन्म के सत्कारजनित पुण्य से प्रसन्न हो भगवान् शिव ने हंस का रूप धारण कर उन दोनों को सुख दिया। हंसावतारधारी शिव भांति-भांति की बातें करने और संदेश पहुँचाने में कुशल थे। वे नल और दमयन्ती दोनों के लिये परमानन्ददायक हुए।

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