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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

तत्पश्चात् उन महर्षियों ने शम्भु के उस वीर्य को रामकार्य की सिद्धि के लिये गौतमकन्या अंजनी में कान के रास्ते स्थापित कर दिया। तब समय आनेपर उस गर्भ से शम्भु महान् बल-पराक्रम सम्पन्न वानर-शरीर धारण करके उत्पन्न हुए, उनका नाम हनुमान् रखा गया। महाबली कपीश्वर हनुमान् जब शिशु ही थे, उसी समय उदय होते हुए सूर्य बिम्ब को छोटा-सा फल समझकर तुरंत ही निगल गये। जब देवताओं ने उनकी प्रार्थना की, तब उन्होंने उसे महाबली सूर्य जानकर उगल दिया। तब देवर्षियों ने उन्हें शिव का अवतार माना और बहुत-सा वरदान दिया। तदनन्तर हनुमान् अत्यन्त हर्षित होकर अपनी माता के पास गये और उन्होंने यह सारा वृत्तान्त आदरपूर्वक कह सुनाया। फिर माता की आज्ञा से धीर-वीर कपि हनुमान्‌ ने नित्य सूर्य के निकट जाकर उनसे से अनायास ही सारी विद्याएँ सीख लीं। तदनन्तर रुद्र के अंशभूत कपिश्रेष्ठ हनुमान् सूर्य की आज्ञा से सूर्यांश से उत्पन्न हुए सुग्रीव के पास चले गये। इसके लिये उन्हें अपनी माता से अनुज्ञा मिल चुकी थी।

तदनन्तर नन्दीश्वर ने भगवान् राम का सम्पूर्ण चरित्र संक्षेप से वर्णन करके कहा-मुने! इस प्रकार कपिश्रेष्ठ हनुमान् ने सब तरह से श्रीराम का कार्य पूरा किया, नाना प्रकार की लीलाएँ कीं, असुरों का मानमर्दन किया, भूतल पर रामभक्ति की स्थापना की और स्वयं भक्ताग्रगण्य होकर सीता-राम को सुख प्रदान किया। वे रुद्रावतार ऐश्वर्यशाली हनुमान् लक्ष्मण के प्राणदाता, सम्पूर्ण देवताओं के गर्वहारी और भक्तों का उद्धार करनेवाले हैं। महावीर हनुमान् सदा रामकार्य में तत्पर रहनेवाले, लोकमें 'रामदूत' नाम से विख्यात, दैत्यों के संहारक और भक्तवत्सल हैं। तात! इस प्रकार मैंने हनुमानजी का श्रेष्ठ चरित-जो धन, कीर्ति और आयु का वर्धक तथा सम्पूर्ण अभीष्ट फलों का दाता है - तुमसे वर्णन कर दिया। जो मनुष्य इस चरित को भक्तिपूर्वक सुनता है अथवा समाहित चित्त से दूसरे को सुनाता है वह इस लोक में सम्पूर्ण भोगोंको भोगकर अन्तमें परम मोक्षको प्राप्त कर लेता है।

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