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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

सत्ताईसवें द्वापर में जब जातूकर्ण्य व्यास होंगे, तब मैं भी प्रभासतीर्थ में सोमशर्मा नाम से प्रकट हूँगा। वहाँ भी अक्षपाद, कुमार, उलूक और वत्स नाम से प्रसिद्ध मेरे चार तपस्वी शिष्य होंगे।

अट्ठाईसवें द्वापर में जब भगवान् श्रीहरि पराशर के पुत्ररूप में द्वैपायन नामक व्यास होंगे, तब पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण अपने छठे अंश से वसुदेव के श्रेष्ठ पुत्र के रूप में उत्पन्न होकर वासुदेव कहलायेंगे। उसी समय योगात्मा मैं भी लोकों को आश्चर्य में डालनेके लिये योगमाया के प्रभाव से ब्रह्मचारी का शरीर धारण करके प्रकट होऊँगा। फिर श्मशानभूमि में मृतकरूप से पड़े हुए अविच्छिन्न शरीर को देखकर मैं ब्राह्मणों के हित-साधन के लिये योगमाया के आश्रय से उसमें घुस जाऊँगा और फिर तुम्हारे तथा विष्णु के साथ मेरुगिर की पुण्यमयी दिव्य गुहा में प्रवेश करूँगा। ब्रह्मन्! वहाँ मेरा नाम लकुली होगा। इस प्रकार मेरा यह कायावतार उष्कृष्ट सिद्धक्षेत्र कहलायेगा और यह जबतक पृथ्वी कायम रहेगी, तबतक लोक में परम विख्यात रहेगा। उस अवतार में भी मेरे चार तपस्वी शिष्य होंगे। उनके नाम कुशिक, गर्ग, मित्र और पौरुष्य होंगे। वे वेदों के पारगामी ऊर्ध्वरेता ब्राह्मण योगी होंगे और माहेश्वर योग को प्राप्त करके शिवलोक को चले जायँगे।

उत्तम व्रत का पालन करनेवाले मुनियो! इस प्रकार परमात्मा शिव ने वैवस्वत मन्वन्तर के सभी चतुर्युगियोंके योगेश्वरावतारों का सम्यक्-रूप से वर्णन किया था। विभो! अट्ठाईस व्यास क्रमश: एक-एक करके प्रत्येक द्वापर में होंगे और योगेश्वरावतार प्रत्येक कलियुग के प्रारम्भ में। प्रत्येक योगेश्वरावतार के साथ उनके चार अविनाशी शिष्य भी होंगे, जो महान् शिवभक्त और योगमार्ग की वृद्धि करनेवाले होंगे। इन पशुपति के शिष्यों के शरीरों पर भस्म रमी रहेगी, ललाट त्रिपुण्ड से सुशोभित रहेगा और रुद्राक्ष की माला ही इनका आभूषण होगा। ये सभी शिष्य धर्मपरायण, वेद-वेदांग के पारगामी विद्वान् और सदा बाहर-भीतर से लिंगार्चन में तत्पर रहनेवाले होंगे। ये शिवजी में भक्ति रखकर योगपूर्वक ध्यान में निष्ठा रखनेवाले और जितेन्द्रिय होंगे। विद्वानों ने इनकी संख्या एक सौ बारह बतलायी है।

इस प्रकार मैंने अट्ठाईस युगों के क्रम से मनु से लेकर कृष्णावतारपर्यन्त सभी अवतारों के लक्षणों का वर्णन कर लिया। जब श्रुतिसमूहों का वेदान्त के रूप में प्रयोग होगा, तब उस कल्प में कृष्णद्वैपायन व्यास होंगे। यों महेश्वर ने ब्रह्माजी पर अनुग्रहकरके योगेश्वरावतारों का वर्णन किया और फिर वे देवेश्वर उनकी ओर दृष्टिपात करके वहीं अन्तर्धान हो गये।

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