ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
'विधे! भगवान् शिव की इच्छा से प्रकट हुए हम दोनों ने जब उनसे प्रार्थना की थी, तब पूर्वकाल में भगवान् शंकर ने जो बात कही थी, उसे याद करो। ब्रह्मन्! अपनी शक्ति से सुन्दर लीला-विहार करनेवाले निर्गुण शिव ने स्वेच्छा से सगुण होकर मुझको और तुमको प्रकट करने के पश्चात् तुम्हें तो सृष्टि-कार्य करने का आदेश दिया और उमासहित उन अविनाशी सृष्टिकर्ता प्रभु ने मुझे उस सृष्टि के पालन का कार्य सौंपा। फिर नाना लीला-विशारद उन दयालु स्वामी ने हँसकर आकाश की ओर देखते हुए बड़े प्रेम से कहा- विष्णो! मेरा उत्कृष्ट रूप इन विधाता के अंग से इस लोक में प्रकट होगा, जिसका नाम रुद्र होगा। रुद्र का रूप ऐसा ही होगा, जैसा मेरा है। वह मेरा पूर्णरूप होगा, तुम दोनों को सदा उसकी पूजा करनी चाहिये। वह तुम दोनों के सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि करनेवाला होगा। वही जगत् का प्रलय करनेवाला होगा। वह समस्त गुणों का द्रष्टा, निर्विशेष एवं उत्तम योग का पालक होगा। यद्यपि तीनों देवता मेरे ही रूप हैं तथापि विशेषत: रुद्र मेरा पूर्णरूप होगा। पुत्रो! देवी उमा के भी तीन रूप होंगे। एक रूप का नाम लक्ष्मी होगा, जो इन श्रीहरि की पत्नी होंगी। दूसरा रूप ब्रह्मपत्नी सरस्वती हैं। तीसरा रूप सती के नाम से प्रसिद्ध होगा। सती उमा का पूर्णरूप होंगी। वे ही भावी रुद्र की पत्नी होंगी।'
ऐसा कहकर भगवान् महेश्वर हम पर कृपा करने के पश्चात् वहाँ से अन्तर्धान हो गये और हम दोनों सुखपूर्वक अपने-अपने कार्य में लग गये। ब्रह्मन्! समय पाकर मैं और तुम दोनों सपत्नीक हो गये और साक्षात् भगवान् शंकर रुद्र नाम से अवतीर्ण हुए। वे इस समय कैलास पर्वत पर निवास करते हैं। प्रजेश्वर! अब शिवा भी सती नाम से अवतीर्ण होनेवाली हैं। अत: तुम्हें उनके उत्पादन के लिये ही यत्न करना चाहिये।'' ऐसा कहकर मुझ पर बड़ी भारी दया करके भगवान् विष्णु अन्तर्धान हो गये और मुझे उनकी बातें सुनकर बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ।
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