ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की, ऋषियों की तथा दक्षकन्याओं की संतानों का वर्णन तथा सती और शिव की महत्ता का प्रतिपादन
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! तदनन्तर मैंने शब्द तन्मात्रा आदि सूक्ष्म-भूतों को स्वयं ही पंचीकृत करके अर्थात् उन पाँचों का परस्पर सम्मिश्रण करके उनसे स्थूल आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी की सृष्टि की। पर्वतों, समुद्रों और वृक्षों आदि को उत्पन्न किया। कला से लेकर युगपर्यन्त जो काल-विभाग हैं, उनकी रचना की। मुने! उत्पत्ति और विनाश वाले और भी बहुत-से पदार्थों का मैंने निर्माण किया, परंतु इससे मुझे संतोष नहीं हुआ। तब साम्ब शिव का ध्यान करके मैंने साधनपरायण पुरुषों की सृष्टि की। अपने दोनों नेत्रों से मरीचि को, हृदय से भूगु को, सिर से अंगिरा को, व्यानवायु से मुनिश्रेष्ठ पुलह को, उदानवायु से पुलस्त्य को, समान-वायु से वसिष्ठ को, अपान से क्रतु को, दोनों कानों से अत्रि को, प्राणों से दक्ष को, गोद से तुम को, छाया से कर्दम मुनि को तथा संकल्प से समस्त साधनों के साधन धर्म को उत्पन्न किया। मुनिश्रेष्ठ! इस तरह इन उत्तम साधकों की सृष्टि करके महादेवजी की कृपा से मैंने अपने-आपको कृतार्थ माना। तात! तत्पश्चात् संकल्प से उत्पन्न हुए धर्म मेरी आज्ञा से मानवरूप धारण करके साधकों की प्रेरणा से साधन में लग गये। इसके बाद मैंने अपने विभिन्न अंगों से देवता, असुर आदि के रूप में असंख्य पुत्रों की सृष्टि करके उन्हें भिन्न-भिन्न शरीर प्रदान किये। मुने! तदनन्तर अन्तर्यामी भगवान् शंकर की प्रेरणा से अपने शरीर को दो भागों में विभक्त करके मैं दो रूपवाला हो गया। नारद! आधे शरीर से मैं स्त्री हो गया और आधे से पुरुष। उस पुरुष ने उस स्त्री के गर्भ से सर्वसाधनसमर्थ उत्तम जोड़े को उत्पन्न किया। उस जोड़े में जो पुरुष था, वही स्वायम्भुव मनु के नामसे प्रसिद्ध हुआ। स्वायम्भुव मनु उच्च कोटि के साधक हुए तथा जो स्त्री हुई, वह शतरूपा कहलायी। वह योगिनी एवं तपस्विनी हुई।
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