लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

ब्रह्माजीने कहा- नारद! मैं संक्षेप से लिंगपूजन की विधि बता रहा हूँ, सुनो। जैसा पहले कहा गया है वैसा जो भगवान् शंकर का सुखमय, निर्मल एवं सनातन रूप है उसका उत्तम भक्तिभाव से पूजन करे, इससे समस्त मनोवांछित फलों की प्राप्ति होगी। दरिद्रता, रोग, दुःख तथा शत्रुजनित पीड़ा - ये चार प्रकार के पाप (कष्ट) तभी तक रहते हैं जब तक मनुष्य भगवान् शिव का पूजन नहीं करता। भगवान् शिव की पूजा होते ही सारे दुःख विलीन हो जाते और समस्त सुखों की प्राप्ति हो जाती है। तत्पश्चात् समय आने पर उपासक की मुक्ति भी होती है। जो मानवशरीर का आश्रय लेकर मुख्यतया संतान-सुख की कामना करता है उसे चाहिये कि वह सम्पूर्ण कार्यों और मनोरथों के साधक महादेवजी की पूजा करे। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र भी सम्पूर्ण कामनाओं तथा प्रयोजनों की सिद्धि के लिये क्रम से विधि के अनुसार भगवान् शंकर की पूजा करें। प्रातःकाल ब्राह्म मुहूर्त में उठकर गुरु तथा शिव का स्मरण करके तीर्थों का चिन्तन एवं भगवान् विष्णु का ध्यान करे। फिर मेरा, देवताओं का और मुनि आदि का भी स्मरण-चिन्तन करके स्तोत्रपाठपूर्वक शंकरजी का विधिपूर्वक नाम ले। उसके बाद शय्या से उठकर निवासस्थान से दक्षिण दिशा में जाकर मलत्याग करे। मुने! एकान्त में मलोत्सर्ग करना चाहिये। उससे शुद्ध होने के लिये जो विधि मैंने सुन रखी है उसी को आज कहता हूँ। मन को एकाग्र करके सुनो। ब्राह्मण गुदा की शुद्धि के लिये उस में पाँच बार शुद्ध मिट्टी का लेप करे और धोये। क्षत्रिय चार बार? वैश्य तीन बार और शूद्र दो बार विधिपूर्वक गुदा की शुद्धि के लिये उसमें मिट्टी लगाये। लिंग में भी एक बार प्रयत्नपूर्वक मिट्टी लगानी चाहिये। तत्पश्चात् बायें हाथ में दस बार और दोनों हाथों में सात बार मिट्टी लगाकर धोये। तात! प्रत्येक पैर में तीन-तीन बार मिट्टी लगाये। फिर दोनों हाथों में भी मिट्टी लगाकर धोये। स्त्रियों को शूद्र की ही भांति अच्छी तरह मिट्टी लगानी चाहिये। हाथ-पैर धोकर पूर्ववत् शुद्ध मिट्टी ले और उसे लगाकर दाँत साफ करे। फिर अपने वर्ण के अनुसार मनुष्य दतुअन करे। ब्राह्मण को बारह अंगुल की दतुअन करनी चाहिये। क्षत्रिय ग्यारह अंगुल, वैश्य दस अंगुल और शूद्र नौ अंगुल की दतुअन करे। यह दतुअन का मान बताया गया। मनुस्मृति के अनुसार कालदोष का विचारकरके ही दतुअन करे या त्याग दे। तात! षष्ठी, प्रतिपदा, अमावस्या, नवमी, व्रत का दिन, सूर्यास्त का समय, रविवार तथा श्राद्ध-दिवस - ये दन्तधावन के लिये वर्जित हैं, इनमें दतुअन नहीं करनी चाहिये। दतुअन के पश्चात् तीर्थ (जलाशय) आदि में जाकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिये, विशेष देश- काल आनेपर मन्त्रोच्चारणपूर्वक स्नान करना उचित है। स्नान के पश्चात् पहले आचमन करके वह धुला हुआ वस्त्र धारण करे। फिर सुन्दर एकान्त स्थल में बैठकर संध्याविधि का अनुष्ठान करे। यथायोग्य संध्याविधि का पालन करके पूजा का कार्य आरम्भ करे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai