ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
देवताओं का भगवान् शिव से पार्वती के साथ विवाह करने का अनुरोध, भगवान् का विवाह के दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करने पर स्वीकार कर लेना
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! देवताओं ने वहाँ पहुँचकर भगवान् रुद्र को प्रणाम करके उनकी स्तुति की। तब नन्दिकेश्वर ने भगवान् शिव से उनकी दीनबन्धुता एवं भक्तवत्सलता की प्रशंसा करते हुए कहा- 'प्रभो! देवता और मुनि संकट में पड़कर आपकी शरण में आये हैं। सर्वेश्वर! आप उनका उद्धार करें।'
दयालु नन्दी के इस प्रकार सूचित करने पर भगवान् शम्भु धीरे-धीरे आँखें खोलकर ध्यान से उपरत हुए। समाधि से विरत हो परमज्ञानी परमात्मा एवं ईश्वर शम्भु ने समस्त देवताओं से इस प्रकार कहा।
शम्भु बोले- श्रीविष्णु और ब्रह्मा आदि देवेश्वरो! तुम सब लोग मेरे समीप कैसे आये? तुम अपने आने का जो भी कारण हो, वह शीघ्र बताओ।
भगवान् शंकर का यह वचन सुनकर सब देवता प्रसन्न हो कारण बताने के लिये भगवान् विष्णु के मुँह की ओर देखने लगे। तब शिव के महान् भक्त और देवताओं के हितकारी श्रीविष्णु मेरे बताये हुए देवताओं के महत्तर कार्य को सूचित करने लगे।
श्रीविष्णु ने कहा- 'शम्भो! तारकासुर ने देवताओं को अत्यन्त अद्भुत एवं महान् कष्ट प्रदान किया है। यही बताने के लिये सब देवता यहाँ आये हैं। भगवन्! आपके औरस पुत्र से ही तारक दैत्य मारा जा सकेगा और किसी प्रकार से नहीं। मेरा यह कथन सर्वथा सत्य है। महादेव! इस प्रकार विचार करके आप कृपा करें। आपको नमस्कार है। स्वामिन्! तारकासुर के द्वारा उपस्थित किये गये इस कष्ट से आप देवताओं का उद्धार कीजिये। देव! शम्भो! आप दाहिने हाथ से गिरिजा का पाणिग्रहण करें। गिरिराज हिमवान् के द्वारा दी हुई महानुभावा पार्वती को पाणिग्रहण के द्वारा ही अनुगृहीत कीजिये।'
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