ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
रुद्र की नेत्राग्नि से काम का भस्म होना, रति का विलाप, देवताओं की प्रार्थना से शिव का काम को द्वापर में प्रद्युम्नरूप से नूतन शरीर की प्राप्ति के लिये वर देना और रति का शम्बर-नगर में जाना
ब्रह्माजी कहते हैं- मुने! काम अपने साथी वसन्त आदि को लेकर वहाँ पहुँचा। उसने भगवान् शिव पर अपने बाण चलाये। तब शंकरजी के मन में पार्वती के प्रति आकर्षण होने लगा और उनका धैर्य छूटने लगा। अपने धैर्य का ह्रास होता देख महायोगी महेश्वर अत्यन्त विस्मित हो मन-ही-मन इस प्रकार चिन्तन करने लगे।
शिव बोले- मैं तो उत्तम तपस्या कर रहा था, उसमें विघ्न कैसे आ गये? किस कुकर्मी ने यहाँ मेरे चित्त में विकार पैदा कर दिया?
इस तरह विचार करके सत्पुरुषों के आश्रयदाता महायोगी परमेश्वर शिव शंका-युक्त हो सम्पूर्ण दिशाओं की ओर देखने लगे। इसी समय वामभाग में बाण खींचे खड़े हुए काम पर उनकी दृष्टि पड़ी। वह मूढ़चित्त मदन अपनी शक्ति के घमंड में आकर पुन: अपना बाण छोड़ना ही चाहता था। नारद! इस अवस्था में काम पर दृष्टि पड़ते ही परमात्मा गिरीश को तत्काल रोष चढ़ आया। मुने! उधर आकाश में बाणसहित धनुष लिये खड़े हुए काम ने भगवान् शंकर पर अपना अमोघ अस्त्र छोड़ दिया, जिसका निवारण करना बहुत कठिन था। परंतु परमात्मा शिव पर वह अमोघ अस्त्र भी मोघ (व्यर्थ) हो गया, कुपित हुए परमेश्वर के पास जाते ही शान्त हो गया। भगवान् शिव पर अपने अस्त्र के व्यर्थ हो जानेपर मन्मथ (काम) को बड़ा भय हुआ। भगवान् मृत्युंजय को सामने देखकर वह काँप उठा और इन्द्र आदि समस्त देवताओं का स्मरण करने लगा। मुनिश्रेष्ठ! अपना प्रयास निष्फल हो जाने पर काम भय से व्याकुल हो उठा था। मुनीश्वर! कामदेव के स्मरण करने पर वे इन्द्र आदि सब देवता वहाँ आ पहुँचे और शम्भु को प्रणाम करके उनकी स्तुति करने लगे।
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