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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

मेना बोलीं- जो नहामाया जगत् को धारण करने वाली चण्डिका, लोकधारिणी तथा सम्पूर्ण मनोवांछित पदार्थों को देने वाली हैं, उन महादेवी को मैं प्रणाम करती हूँ। जो नित्य आनन्द प्रदान करने वाली माया, योगनिद्रा, जगज्जननी तथा सुन्दर कमलों की माला से अलंकृत हैं उन नित्य-सिद्धा उमादेवी को मैं नमस्कार करती हूँ। जो सबकी मातामही, नित्य आनन्दमयी, भक्तों के शोक का नाश करनेवाली तथा कल्पपर्यन्त नारियों एवं प्राणियों की बुद्धिरूपिणी हैं उन देवी को मैं प्रणाम करती हूँ। आप यतियों के अज्ञानमय बन्धन के नाश की हेतुभूता ब्रह्मविद्या हैं। फिर मुझ-जैसी नारियाँ आप के प्रभाव का क्या वर्णन कर सकती हैं। अथर्ववेद की जो हिंसा (मारण आदि का प्रयोग) है वह आपही हैं। देवि! आप मेरे अभीष्ट फल को सदा प्रदान कीजिये। भावहीन (आकाररहित) तथा अदृश्य नित्यानित्य तन्मात्राओं से आप ही पंचभूतों के समुदाय को संयुक्त करती हैं। आप ही उनकी शाश्वत शक्ति हैं। आपका स्वरूप नित्य है। आप समय-समय पर योगयुक्त एवं समर्थ नारी के रूप में प्रकट होती हैं। आप ही जगत् की योनि और आधार-शक्ति हैं। आप ही प्राकृत तत्त्वों से परे नित्या प्रकृति कही गयी हैं। जिसके द्वारा ब्रह्म के स्वरूप को वश में कियाजाता (जाना जाता) है वह नित्या विद्या आप ही हैं। मात:! आज मुझपर प्रसन्न होइये। आप ही अग्नि के भीतर व्याप्त उग्र दाहिका शक्ति हैं। आप ही सूर्य-किरणों में स्थित प्रकाशिका शक्ति हैं। चन्द्रमा में जो आह्वादिका शक्ति है वह भी आप ही हैं। ऐसी आप चण्डी-देवी का मैं स्तवन और वन्दन करती हूँ। आप स्त्रियोंको बहुत प्रिय हैं। ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारियों की ध्येयभूता नित्या ब्रह्मशक्ति भी आप ही हैं। सम्पूर्ण जगत् की वांछा तथा श्रीहरि की माया भी आप ही हैं। जो देवी इच्छानुसार रूप धारण करके सृष्टि, पालन और संहारमयी हो उन कार्यों का सम्पादन करती हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं रुद्र के शरीर की भी हेतुभूता हैं वे आप ही हैं। देवि! आज आप मुझपर प्रसन्न हों। आपको पुन: मेरा नमस्कार है।

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