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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय ५

मेना को प्रत्यक्ष दर्शन देकर शिवादेवी का उन्हें अभीष्ट वरदान से संतुष्ट करना तथा मेना से मैनाक का जन्म

नारदजी ने पूछा- पिताजी! जब देवी दुर्गा अन्तर्धान हो गयीं और देवगण अपने-अपने धाम को चले गये, उसके बाद क्या हुआ?

ब्रह्माजी ने कहा- मेरे पुत्रोंमें श्रेष्ठ विप्रवर नारद! ज़ब विष्णु आदि देवसमुदाय हिमालय और मेना को देवी की आराधना का उपदेश दे चले गये, तब गिरिराज हिमाचल और मेना दोनों दम्पति ने बड़ी भारी तपस्या आरम्भ की। वे दिन-रात शम्भु और शिवा का चिन्तन करते हुए भक्तियुक्त चित्त से नित्य उनकी सम्यक् रीति से आराधना करने लगे। हिमवान् की पत्नी मेना बड़ी प्रसन्नता से शिवसहित शिवादेवी की पूजा करने लगीं। वे उन्हीं के संतोष के लिये सदा ब्राह्मणों को दान देती रहती थीं। मन में संतान की कामना ले मेना चैत्रमास के आरम्भ से लेकर सत्ताईस वर्षों तक प्रतिदिन तत्परतापूर्वक शिवा-देवी की पूजा और आराधना में लगी रहीं। वे अष्टमी को उपवास करके नवमी को लड्डू, बलि-सामग्री, पीठी, खीर और गन्ध-पुष्प आदि देवी को भेंट करती थीं। गंगा के किनारे ओषधिप्रस्थ में उमा की मिट्टी की मूर्ति बनाकर नाना प्रकार की वस्तुएँ समर्पित करके उसकी पूजा करती थीं। मेनादेवी कभी निराहार रहतीं, कभी व्रत के नियमों का पालन करतीं, कभी जल पीकर रहतीं और कभी हवा पीकर ही रह जाती थीं। विशुद्ध तेज से दमकती हुई दीप्तिमती मेना ने प्रेमपूर्वक शिवा में चित्त लगाये सत्ताईस वर्ष व्यतीत कर दिये। सत्ताईस वर्ष पूरे होने पर जगन्मयी शंकरकामिनी जगदम्बा उमा अत्यन्त प्रसन्न हुईं। मेना की उत्तम भक्ति से संतुष्ट हो वे परमेश्वरी देवी उनपर अनुग्रह करने के लिये उनके सामने प्रकट हुईं। तेजोमण्डल के बीच में विराजमान तथा दिव्य अवयवों से संयुक्त उमादेवी प्रत्यक्ष दर्शन दे मेना से हँसती हुई बोलीं।

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