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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय १ - २

हिमालय के स्थावर-जंगम द्विविध स्वरूप एवं दिव्यत्व का वर्णन, मेना के साथ उनका विवाह तथा मेना आदि को पूर्वजन्म में प्राप्त सनकादि के शाप एवं वरदान का कथन

नारदजी ने पूछा- ब्रह्मन्! पिता के यज्ञ में अपने शरीर का परित्याग करके दक्षकन्या जगदम्बा सतीदेवी किस प्रकार गिरिराज हिमालय की पुत्री हुईं? किस तरह अत्यन्त उग्र तपस्या करके उन्होंने पुन: शिव को ही पतिरूप में प्राप्त किया? यह मेरा प्रश्न है आप इसपर भलीभांति और विशेषरूप से प्रकाश डालिये।

ब्रह्माजी ने कहा- मुने! नारद! तुम पहले पार्वती की माता के जन्म, विवाह और अन्य भक्तिवर्धक पावन चरित्र सुनो। मुनिश्रेष्ठ! उत्तरदिशा में पर्वतों का राजा हिमवान् नामक महान् पर्वत है जो महातेजस्वी और समृद्धिशाली है। उसके दो रूप प्रसिद्ध हैं- एक स्थावर और दूसरा जंगम। मैं संक्षेप से उसके सूक्ष्म (स्थावर) स्वरूप का वर्णन करता हूँ। वह रमणीय पर्वत नाना प्रकार के रत्नोंका आकर (खान) है और पूर्व तथा पश्चिम समुद्र के भीतर प्रवेश करके इस तरह खड़ा है मानो भूमण्डलको नापनेके लिये कोई मानदण्ड हो। वह नाना प्रकार के वृक्षों से व्याप्त है और अनेक शिखरोंके कारण विचित्र शोभा से सम्पन्न दिखायी देता है। सिंह, व्याघ्र आदि पशु सदा सुखपूर्वक उसका सेवन करते हैं। हिम का तो वह भंडार ही है, इसलिये अत्यन्त उग्र जान पड़ता है। भांति-भांति के आश्चर्यजनक दृश्यों से उसकी विचित्र शोभा होती है। देवता, ऋषि, सिद्ध और मुनि उस पर्वतका आश्रय लेकर रहते हैं। भगवान् शिव को वह बहुत ही प्रिय है तपस्या करने का स्थान है। स्वरूप से ही वह अत्यन्त पवित्र और महात्माओं को भी पावन करनेवाला है। तपस्या में वह अत्यन्त शीघ्र सिद्धि प्रदान करता है। अनेक प्रकार के धातुओं की खान और शुभ है। वही दिव्य शरीर धारण करके सर्वांग-सुन्दर रमणीय देवता के रूप में भी स्थित है। भगवान् विष्णु का अविकृत अंश है, इसीलिये वह शैलराज साधु-संतों को अधिक प्रिय है।

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