ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
ब्रह्माजी कहते हैं- मुने! भगवान् महेश्वर के इस सुखदायक वचन को सुनकर सब देवता, मुनि आदि को उस अवसर पर बड़ा हर्ष हुआ। कुदुम्बसहित दक्ष बड़ी प्रसन्नता के साथ शिवभक्ति में तत्पर हो गया। वे देवता आदि भी शिव को ही सर्वेश्वर जानकर भगवान् शिव के भजन में लग गये। जिसने जिस प्रकार परमात्मा शम्भु की स्तुति की थी, उसे उसी प्रकार संतुष्टचित्त हुए शम्भु ने वर दिया। मुने! तदनन्तर भगवान् शिव की आज्ञा पाकर प्रसन्नचित्त हुए शिवभक्त दक्ष ने शिव के ही अनुग्रह से अपना यज्ञ पूरा किया। उन्होंने देवताओं को तो यज्ञभाग दिये ही, शिव को भी पूर्ण भाग दिया। साथ ही ब्राह्मणों को दान दिया! इस तरह उन्हें शम्भु का अनुग्रह प्राप्त हुआ। इस प्रकार महादेवजी के उस महान् कर्म का विधिपूर्वक वर्णन किया गया। प्रजापति ने ऋत्विजों के सहयोग से उस यज्ञकर्म को विधिवत् समाप्त किया। मुनीश्वर! इस प्रकार परब्रह्मस्वरूप शंकर के प्रसाद से वह दक्ष का यज्ञ पूरा हुआ। तदनन्तर सब देवता और ऋषि संतुष्ट हो भगवान् शिव के यश का वर्णन करतेहुए अपने-अपने स्थान को चले गये। दूसरे लोग भी उस समय वहाँ से सुखपूर्वक विदा हो गये। मैं और श्रीविष्णु भी अत्यन्त प्रसन्न हो भगवान् शिव के सर्वमंगलदायक सुयश का निरन्तर गान करते हुए अपने-अपने स्थान को सानन्द चले आये। सत्पुरुषों के आश्रयभूत महादेवजी भी दक्ष से सम्मानित हो प्रीति और प्रसन्नता के साथ गणोंसहित अपने निवासस्थान कैलास पर्वत को चले गये। अपने पर्वतपर आकर शम्भु ने अपनी प्रिया सती का स्मरण किया और प्रधान-प्रधान गणों से उनकी कथा कही। इस प्रकार दक्षकन्या सती यज्ञ में अपने शरीर को त्यागकर फिर हिमालय की पत्नी मेना के गर्भ से उत्पन्न हुईं, यह बात प्रसिद्ध है। फिर वहाँ तपस्या करके गौरी शिवा ने भगवान् शिव का पतिरूप में वरण किया। वे उनके वामांग में स्थान पाकर अद्भुत लीलाएँ करने लगीं।
नारद! इस तरह मैंने तुमसे सती के परम अद्भुत दिव्य चरित्र का वर्णन किया है जो भोग और मोक्ष को देनेवाला तथा सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करनेवाला है। यह उपाख्यान पाप को दूर करनेवाला, पवित्र एवं परम पावन है। स्वर्ग, यश तथा आयु को देनेवाला तथा पुत्र-पौत्ररूप फल प्रदान करनेवाला है। तात! जो भक्तिमान् पुरुष भक्तिभाव से लोगों को यह कथा सुनाता है वह इस लोक में सम्पूर्ण कर्मों का फल पाकर परलोक में परमगति को प्राप्त कर लेता है।
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