ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
यक्षराज कुबेर की अलकापुरी और सौगन्धिक वन को पीछे छोड़कर आगे बढ़ते हुए देवताओं ने थोड़ी ही दूरपर शंकरजी के वटवृक्ष को देखा। उसने चारों ओर अपनी अविचल छाया फैला रखी थी। वह वृक्ष सौ योजन ऊँचा था और उसकी शाखाएँ पचहत्तर योजनतक फैली हुई थीं। उसपर कोई घोंसला नहीं था और ग्रीष्म का ताप तो उससे सदा दूर ही रहता था। बड़े पुण्यात्मा पुरुषों को ही उसका दर्शन हो सकता है। वह परम रमणीय और अत्यन्त पावन है। वह दिव्य वृक्ष भगवान् शम्भु का योगस्थल है। योगियों के द्वारा सेव्य और परम उत्तम है। मुमुक्षुओं के आश्रयभूत उस महायोगमय वटवृक्ष के नीचे विष्णु आदि सब देवताओं ने भगवान् शंकर को विराजमान देखा। मेरे पुत्र महासिद्ध सनकादि, जो सदा शिव-भक्ति में तत्पर रहनेवाले और शान्त हैं बड़ी प्रसन्नता के साथ उनकी सेवा में बैठे थे। भगवान् शिव का श्रीविग्रह परमशान्त दिखायी देता था। उनके सखा कुबेर जो गुह्यकों और राक्षसों के स्वामी हैं? अपने सेवकगणों तथा कुदुम्बीजनों के साथ सदा विशेषरूप से उनकी सेवा किया करते हैं। वे परमेश्वर शिव उस समय तपस्वीजनों को परमप्रिय लगनेवाला सुन्दररूप धारण किये बैठे थे। भस्म आदि से उनके अंगों की बड़ी शोभा हो रही थी। भगवान् शिव अपने वत्सल स्वभाव के कारण सारे संसार के सुहद् हैं। नारद! उस दिन वे एक कुशासनपर बैठे थे और सब संतों के सुनते हुए तुम्हारे प्रश्न करने पर तुम्हें उत्तम ज्ञान का उपदेश दे रहे थे। वे बायाँ चरण अपनी दायीं जाँघपर और बायाँ हाथ बायें घुटनेपर रखे, कलाई में रुद्राक्ष की माला डाले सुन्दर तर्कमुद्रा (तर्जनी को अँगूठे से जोड़कर और अन्य उँगलियों को आपस में मिलाकर फैला देने से जो बन्ध सिद्ध होता है, उसे तर्कमुद्रा कहते हैं। इसी का नाम ज्ञानमुद्रा भी है।) से विराजमान थे।
इस रूप में भगवान् शिव का दर्शन करके उस समय विष्णु आदि सब देवताओं ने दोनों हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर तुरंत उनके चरणों में प्रणाम किया। मेरे साथ भगवान् विष्णु को आया देख सत्युरुषों के आश्रयदाता भगवान् रुद्र उठकर खड़े हो गये और उन्होंने सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम भी किया। फिर विष्णु आदि सब देवताओं ने जब भगवान् शिव को प्रणाम कर लिया, तब उन्होंने मुझे नमस्कार किया - ठीक उसी तरह जैसे लोकों को उत्तम गति प्रदान करनेवाले भगवान् विष्णु प्रजापति कश्यप को प्रणाम करते हैं। तत्पश्चात् देवताओं, सिद्धों, गणाधीशों और महर्षियों से नमस्कृत तथा स्वयं भी (श्रीविष्णुको एवं मुझको) नमस्कार करनेवाले भगवान् शिव से श्रीहरि ने आदरपूर्वक वार्तालाप आरम्भ किया।
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