ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
श्रीविष्णु और देवताओं से अपराजित दधीचि का उनके लिये शाप और क्षुव पर अनुग्रह
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! भक्तवत्सल भगवान् विष्णु राजा क्षुव का हित-साधन करने के लिये ब्राह्मण का रूप धारणकर दधीचि के आश्रमपर गये। वहाँ उन जगद्गुरु श्रीहरिने शिवभक्तशिरोमणि ब्रह्मर्षि दधीचि को प्रणाम करके क्षुव के कार्य की सिद्धि के लिये उद्यत हो उनसे यह बात कही।
श्रीविष्णु बोले- भगवान् शिव की आराधना में तत्पर रहनेवाले अविनाशी ब्रह्मर्षि दधीचि! मैं तुमसे एक वर माँगता हूँ। उसे तुम मुझे दे दो।
क्षुव के कार्य की सिद्धि चाहनेवाले देवाधिदेव श्रीहरि के इस प्रकार याचना करनेपर शैवशिरोमणि दधीचि ने शीघ्र ही भगवान् विष्णु से इस प्रकार कहा।
दधीचि बोले- ब्रह्मन्! आप क्या चाहते हैं यह मुझे ज्ञात हो गया। आप क्षुव का काम बनाने के लिये साक्षात् भगवान् श्रीहरि ही बाह्मण का रूप धारण करके यहाँ आये हैं। इसमें संदेह नहीं कि आप पूरे मायावी हैं। किंतु देवेश! जनार्दन! मुझे भगवान् रुद्र की कृपा से भूत, भविष्य और वर्तमान - तीनों कालों का ज्ञान सदा ही बना रहता है। सुव्रत! मैं आपको जानता हूँ। आप पापहारी श्रीहरि एवं विष्णु हैं। यह ब्राह्मण का वेश छोड़िये। दुष्ट बुद्धिवाले राजा क्षुव ने आपकी आराधना की है। (इसीलिये आप पधारे हैं) भगवन्! हरे! आपकी भक्तवत्सलता को भी मैं जानता हूँ। यह छल छोड़िये। अपने रूप को ग्रहण कीजिये और भगवान् शंकर के स्मरण में मन लगाइये। मैँ भगवान् शंकर की आराधनामें लगा रहता हूँ। ऐसी दशा में भी यदि मुझसे किसी को भय हो तो आप उसे यत्नपूर्वक सत्य की शपथ के साथ कहिये। मेरा मन शिव के स्मरण में ही लगा रहता है। मैं कभी झूठ नहीं बोलता। इस संसार में किसी देवता या दैत्य से भी मुझे भय नहीं होता।
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