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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

शुक्र बोले- तात दधीचि! मैं सर्वेश्वर भगवान् शिव का पूजन करके तुम्हें श्रुतिप्रतिपादित महामृत्युंजय नामक श्रेष्ठ मन्त्र का उपदेश देता हूँ।

त्रयम्बकं यजामहे - हम भगवान् त्र्यम्बक का यजन (आराधन) करते हैं। त्र्यम्बक का अर्थ है- तीनों लोकों के पिता प्रभावशाली शिव। वे भगवान् सूर्य, सोम और अग्नि - तीनों मण्डलों के पिता हैं। सत्त्व, रज और तम - तीनों गुणों के महेश्वर हैं। आत्मतत्त्व, विद्यातत्त्व और शिवतत्त्व - इन तीन तत्त्वों के; आहवनीय, गार्हपत्य और दक्षिणाग्नि -इन तीनों अग्नियों के; सर्वत्र उपलब्ध होनेवाले पृथ्वी, जल एवं तेज - इन तीन मूर्त भूतों के (अथवा सात्त्विक आदि भेद से त्रिविध भूतोंके), त्रिदिव  (स्वर्ग) के, त्रिभुज के, त्रिधाभूत सबके ब्रह्मा, विष्णु और शिव - तीनों देवताओं के महान् ईश्वर महादेवजी ही हैं। (यहाँ तक मन्त्र के प्रथम चरण की व्याख्या हुई ) मन्त्र का द्वितीय चरण है- सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् - जैसे फूलों में उत्तम गन्ध होती है उसी प्रकार वे भगवान् शिव सम्पूर्ण भूतों में, तीनों गुणों में, समस्त कृत्यों में, इन्द्रियों में, अन्यान्य देवों में और गणों में उनके प्रकाशक सारभूत आत्मा के रूप में व्याप्त हैं अतएव सुगन्धयुक्त एवं सम्पूर्ण देवताओं के ईश्वर हैं। (यहाँतक 'सुगन्धिम्' पद की व्याख्या हुई। अब  'पुष्टिवर्धनम्' की व्याख्या करते हैं-) उत्तम व्रत का पालन करने वाले द्विजश्रेष्ठ! महामुने नारद! उन अन्तर्यामी पुरुष शिव से प्रकृतिका पोषण होता है - महत्तत्त्व से लेकर विशेष- पर्यन्त सम्पूर्ण विकल्पों की पुष्टि होती है तथा मुझ ब्रह्मा का, विष्णु का, मुनियों का और इन्द्रियों सहित देवताओं का भी पोषण होता है, इसलिये वे ही 'पुष्टिवर्धन' हैं।  (अब मन्त्र के तीसरे और चौथे चरण की व्याख्या करते हैं। ) उन दोनों चरणों का स्वरूप यों है - उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् - अर्थात् 'प्रभो! जैसे खरबूजा पक जाने पर लताबन्धन से छूट जाता है उसी तरह मैं मृत्युरूप बन्धन से मुक्त हो जाऊँ, अमृतपद (मोक्ष) से पृथक् न होऊँ।' वे रुद्रदेव अमृतस्वरूप हैं; जो पुण्यकर्म से, तपस्या से, स्वाध्याय से, योग से अथवा ध्यान से उनकी आराधना करता है, उसे नूतन जीवन प्राप्त होता है। इस सत्य के प्रभाव से भगवान् शिव स्वयं ही अपने भक्त को मृत्यु के सूक्ष्म बन्धनसे मुक्त कर देते हैं; क्योंकि वे भगवान् ही बन्धन और मोक्ष देनेवाले हैं-ठीक उसी तरह जैसे 'उर्वारुक अर्थात् ककड़ीका पौधा अपने फलको स्वयं ही लताके बन्धनमें बाँधे रखता है और पक जानेपर स्वयं ही उसे बन्धनसे मुक्त कर देता है। 

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