ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
प्रमथगणों सहित वीरभद्र और महाकाली का दक्षयज्ञ-विध्वंस के लिये प्रस्थान, दक्ष तथा देवताओं को अपशकुन एवं उत्पातसूचक लक्षणों का दर्शन एवं भय होना
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! महेश्वरके इस वचनको आदरपूर्वक सुनकर वीरभद्र बहुत संतुष्ट हुए। उन्होंने महेश्वरको प्रणाम किया। तत्पश्चात् उन देवाधिदेव शूली की उपर्युक्त आज्ञा को शिरोधार्य करके वीरभद्र वहाँ से शीघ्र ही दक्ष के यज्ञमण्डप की ओर चले। भगवान् शिव ने केवल शोभा के लिये उनके साथ करोड़ों महावीर गणों को भेज दिया, जो प्रलयाग्नि के समान तेजस्वी थे। वे कौतूहलकारी प्रबल वीर प्रमथगण वीर- भद्र के आगे और पीछे भी चल रहे थे। काल के भी काल भगवान् रुद्र के वीरभद्र-सहित जो लाखों पार्षदगण थे, उन सबका स्वरूप रुद्र के ही समान था। उन गणों के साथ महात्मा वीरभद्र भगवान् शिव के समान ही वेश-भूषा धारण किये रथपर बैठकर यात्रा कर रहे थे। उनके एक सहस्र भुजाएँ थीं। शरीरमें नागराज लिपटे हुए थे। वीरभद्र बड़े प्रबल और भयंकर दिखायी देते थे। उनका रथ बहुत ही विशाल था। उसमें दस हजार सिंह जोते जाते थे, जो प्रयत्नपूर्वक उस रथको खींचते थे। उसी प्रकार बहुत-से प्रबल सिंह शार्दूल, मगर, मत्स्य और सहस्त्रों हाथी उस रथ के पार्श्वभाग की रक्षा करते थे। काली, कात्यायनी, ईशानी, चामुण्डा, मुण्डमर्दिनी, भद्रकाली, भद्रा, त्वरिता तथा वैष्णवी - इन नव दुर्गाओं के साथ तथा समस्त भूतगणों के साथ महाकाली दक्ष का विनाश करने के लिये चलीं। डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रमथ, गुह्यक, कूष्माण्ड, पर्पट, चटक, ब्रह्मराक्षस, भैरव तथा क्षेत्रपाल आदि - ये सभी वीर भगवान् शिव की आज्ञा का पालन एवं दक्ष के यज्ञ का विनाश करने के लिये तुरंत चल दिये। इनके सिवा चौंसठ गणों के साथ योगिनियों का मण्डल भी सहसा कुपित हो दक्षयज्ञ का विनाश करनेके लिये वहीं से प्रस्थित हुआ। इस प्रकार कोटि-कोटि गण एवं विभिन्न प्रकार के गणाधीश वीरभद्र के साथ चले। उस समय भेरियों की गम्भीर ध्वनि होने लगी। नाना प्रकार के शब्द करनेवाले शंख बज उठे। भिन्न-भिन्न प्रकार की सींगें बजने लगीं। महामुने! सेनासहित वीरभद्र की यात्रा के समय वहाँ बहुत-से सुखद शकुन होने लगे।
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