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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय २८ 

दक्षयज्ञ का समाचार पा सती का शिव से वहाँ चलने के लिये अनुरोध, दक्ष के शिवद्रोह को जानकर भगवान् शिव की आज्ञा से देवी सती का पिता के यज्ञमण्डप की ओर शिवगणों के साथ प्रस्थान

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! जब देवर्षिगण बड़े उत्साह और हर्ष के साथ दक्ष के यज्ञमें जा रहे थे, उसी समय दक्षकन्या देवी सती गन्धमादन पर्वतपर चँदोवे से युक्त धारागृह में सखियों से घिरी हुई भांति-भांति की उत्तम क्रीड़ाएँ कर रही थीं। प्रसन्नतापूर्वक क्रीड़ा में लगी हुई सती ने उस समय रोहिणी के साथ दक्षयज्ञ में जाते हुए चन्द्रमा को देखा।

चन्द्रमा को देखकर वे अपनी हितकारिणी प्राणप्यारी श्रेष्ठ सखी विजया से बोलीं- 'मेरी सखियों में श्रेष्ठ प्राणप्रिये विजये! जल्दी जाकर पूछ तो आ, ये चन्द्रदेव रोहिणी के साथ कहाँ जा रहे हैं?'

सती के इस प्रकार आज्ञा देनेपर विजया तुरंत उनके पास गयी और उसने यथोचित शिष्टाचार के साथ पूछा- 'चन्द्रदेव! आप कहाँ जा रहे हैं? 

विजया का यह प्रश्न सुनकर चन्द्रदेव ने अपनी यात्रा का उद्देश्य आदरपूर्वक बताया। दक्ष के यहाँ होनेवाले यज्ञोत्सव आदि का सारा वृत्तान्त कहा। वह सब सुनकर विजया बड़ी उतावली के साथ देवी के पास आयी और चन्द्रमा ने जो कुछ कहा था, वह सब उसने कह सुनाया। उसे सुनकर कालिका सती देवी को बड़ा विस्मय हुआ। अपने यहाँ सूचना न मिलने का क्या कारण है यह बहुत सोचने-विचारने पर भी उनकी समझ में नहीं आया। तब उन्होंने पार्षदों से घिरे अपने स्वामी भगवान् शिव के पास आकर भगवान् शंकर से पूछा।

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