लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय २६ 

प्रयाग में समस्त महात्मा मुनियोंद्वारा किये गये यज्ञ में दक्ष का भगवान् शिव को तिरस्कारपूर्वक शाप देना तथा नन्दी द्वारा ब्राह्मणकुल को शाप-प्रदान, भगवान्  शिव का नन्दी को शान्त करना

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! पूर्वकाल में समस्त महात्मा मुनि प्रयाग में एकत्र हुए थे। वहाँ सम्मिलित हुए उन सब महात्माओं का विधि-विधान से एक बहुत बड़ा यज्ञ हुआ। उस यज्ञ में सनकादि सिद्धगण, देवर्षि, प्रजापति, देवता तथा ब्रह्म का साक्षात्कार करनेवाले ज्ञानी भी पधारे थे। मैं भी मूर्तिमान् महातेजस्वी निगमों और आगमों से युक्त हो सपरिवार वहाँ गया था। अनेक प्रकार के उत्सवों के साथ वहाँ उनका विचित्र समाज जुटा था। नाना शास्त्रों के सम्बन्ध में ज्ञानचर्चा एवं वाद-विवाद हो रहे थे। मुने! उसी अवसर पर सती तथा पार्षदों के साथ त्रिलोकहितकारी, सृष्टिकर्ता एवं सबके स्वामी भगवान् रुद्र भी वहाँ आ पहुँचे। भगवान् शिव को आया देख सम्पूर्ण देवताओं, सिद्धों तथा मुनियों ने और मैंने भी भक्तिभाव से उन्हें प्रणाम किया और उनकी स्तुति की। फिर शिव की आज्ञा पाकर सब लोग प्रसन्नतापूर्वक यथास्थान बैठ गये। भगवान् का दर्शन पाकर सब लोग संतुष्ट थे और अपने सौभाग्य की सराहना करते थे। इसी बीच में प्रजापतियों के भी पति प्रभु दक्ष, जो बड़े तेजस्वी थे, अकस्मात् घूमते हुए प्रसन्नता-पूर्वक वहाँ आये। वे मुझे प्रणाम करके मेरी आज्ञा ले वहाँ बैठे। दक्ष उन दिनों समस्त ब्रह्माण्ड के अधिपति बनाये गये थे, अतएव सबके द्वारा सम्माननीय थे। परंतु अपने इस गौरवपूर्ण पद को लेकर उनके मन में बड़ा अहंकार था; क्योंकि वे तत्त्व-ज्ञान से शून्य थे। उस समय समस्त देवर्षियों ने नतमस्तक हो स्तुति और प्रणाम के द्वारा दोनों हाथ जोड़कर उत्तम तेजस्वी दक्ष का आदर-सत्कार किया। परंतु जो नाना प्रकार के लीलाविहार करनेवाले, सबके स्वामी और उत्कृष्ट लीलाकारी स्वतन्त्र परमेश्वर हैं उन महेश्वर ने उस समय दक्ष को मस्तक नहीं झुकाया। वे अपने आसनपर बैठे ही रह गये (खड़े होकर दक्ष का स्वागत नहीं किया)। महादेवजी को वहाँ मस्तक झुकाते न देख मेरे पुत्र प्रजापति दक्ष मन-ही-मन अप्रसन्न हो गये। उन्हें रुद्रपर सहसा क्रोध हो आया, वे ज्ञानशून्य तथा महान् अहंकारी होने के कारण महाप्रभु रुद्र को क्रूर दृष्टि से देखकर सबको सुनाते हुए उच्चस्वर से कहने लगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book