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देवकांता संतति भाग 6

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2057
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''जी हां -- यह हमारा खानदानी कलमदान है।'' दलीपसिंह बोला- ''इस पर मेरे पिता, परदादा और उनके पिता की तस्वीरें नक्काशी करके बनाई गई हैं और हमारे खानदान की हर पीढ़ी एक ऐसा कलमदान बनवाती है जिसमें उससे पहले की चार पीढ़ियों के चित्र हों। यह कलमदान मैंने बनवाया है। इसके बाद मेरा अगला वारिस एक ऐसा ही कलमदान बनवाएगा, जिस पर से मेरे परदादा की तस्वीर हट जाएगी।'' - 'क्या इस कलमदान में इसके अलावा भी कोई दूसरी खासियत है?'' मेघराज ने पूछा।

''नहीं --- और किसी तरह की कोई खासियत नहीं है।'' दलीपसिंह ने कहा- ''हां, साधारण कलमदानों से हटकर इसमें एक खास बात है - लेकिन उसे मैं किसी तरह की खासियत नहीं मानता। साधारण कलमदानों में ढक्कन नहीं होता, इसमें एक मजबूत ढक्कन है। इस सबब से इसे बंद किया जा सकता है। उस ढक्कन को साधारण तरीके से खोला भी नहीं जा सकता। ढक्कन एक खास तरकीब से खुलता है जो गुप्त भाषा में इसी पर लिखा है।''

''लेकिन आपके खानदान की हर पीढ़ी एक ऐसा अजीब कलमदान क्यों बनवाती है?'' दारोगा ने पूछा।

''क्योंकि हमारी खानदानी वसीयत इसी कलमदान में बंद करके रखी जाती है।'' दलीपसिंह बोला - ''खैर...छोड़ो इस कलमदान की बात को। हम कहां बेकार की बातों में उलझ गए। एक तो हमें आपस में मिलने का ही मौका कम मिलता है और अब जब वक्त मिला भी है तो तो उसे बेकार ही गंवा रहे हैं। इस वक्त तो हमें यह सोचना चाहिए कि आज की रात हमने जो कुछ किया है और आगे करेगे -- कहीं, किसी तीसरे आदमी को किसी तरीके से वह मालूम तो नहीं है?''

'हां, यह सोचना तो बहुत जरूरी है।'' दारोगा बोला - क्योंकि अगर किसी भी तराके से हमारा यह भेद कोई तीसरा आदमी जान गया तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी। अगर दुनियां के सामने यह भेद खुल गया कि मैंने ही अपनी बहन कंचन की हत्या की है तो फिर मैं दुनिया को मुंह दिखाने के काबिल नहीं, रहूंगा।''

''इसीलिए तो कहता हूं कि पहले तुम सोचो कि कहीं कोई ऐसा आदमी है तो नहीं।'' दलीपसिंह ने कहा।

''चमनगढ़ में तो इस भेद के बारे में भनक केवल ऐयारों को लग सकती थी, जिन्हें खुद मैंने कंचन और कमला के पीछे लगाया था। लेकिन उन्हें मैंने हुक्म देकर पहले ही इस काम से हटाकर दूसरे कामों पर लगा दिया था। इसके अलावा मैं नहीं समझता कि चमनगढ़ में कोई किसी ढंग से इस भेद को जान सकता है।''

'हमारे ख्याल से तो एक और भी आदमी हो सकता है!''

'कौन?''

'वही जो हमारे खत एक-दूसरे तक पहुंचाता है।'' दलीपसिंह के वाक्य को सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए।

'आपका मतलब क्या बंसीलाल से है?''

''हां।

''लेकिन उसे कैसे मालूम हो सकता है?'' दारोगा बोला- ''मैं नहीं समझता कि किसी भी ढंग से उसे आज का भेद मालूम हुआ होगा।''

'मेरे ख्याल से आज की कार्यवाही जानने का उसके पास एक बहुत ही खूबसूरत जरिया था।'' दलीपसिंह बोला।

'क्या?''

''हमारे खत !'' दलीपसिंह ने कहा-- ''हमारे बीच के खत बंसीलाल ही हम दोनों तक पहुंचाता है। मुमकिन है कि वह रास्ते में हमारे खत पढ़ लेता हो। अगर ऐसा हो तो फिर हमारे खत पढ़-पढ़कर वह हमारी सारी साजिश अवश्य ही जान गया होगा। उनमें वह सब लिखा है जो हमने अब तक किया है और आगे करेंगे।''

''बात तो आपकी ठीक ही है।'' दारोगा बोला- ''वाकई अगर उसने वे खत रास्ते में खोलकर पढ़ लिए होंगे तो वह हमारे इस गुनाह के बारे में बखूबी जान गया होगा। लेकिन उससे किसी भी तरह घबराने की कोई बात नहीं है। उसकी एक ऐसी नस मेरे हाथ में है कि वह मेरी इजाजत के बिना टस-से-मस नहीं हो सकता।''

''खैर.. वह तुम्हारे बस का आदमी है, उसकी तुम जानो।'' दलीपसिंह बोला- ''हां, हम यह गारंटी से कह सकते हैं कि हमारी ओर के किसी भी आदमी को हमारे कामों की भनक तक नहीं है। दूसरा सवाल तुमसे यह था कि तुम हमारे खतों का क्या करते हो?'' उसका यह सवाल सुनकर अपनी जगह पर खड़ा मैं कांप उठा, मुझे लगा -- जैसे खतों का भेद इन लोगों के बीच खुलने ही वाला है।

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