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देवकांता संतति भाग 6

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2057
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''हां - मांगा था!''

'लेकिन मैंने दिया नहीं।''

''तुमने कहा था कि वह चूर्ण मैं तुम्हें परसों सुबह को दूंगा।'' कमला ने कहा।

'अगर इस बात को गौर से सोचो तो मैं उसी वक्त तुम्हें चूर्ण दे देता, लेकिन मैंने तुम्हें चूर्ण नहीं दिया। मेरा चूर्ण न देना ही इस बात का सुबूत है कि मैं यह करना नहीं चाहता था जो मैं कह रहा था। वह केवल तुम्हें परखने के लिए मैंने तुमसे कहा था। तुम्हारे चूर्ण मांगते ही मैं बात को टाल गया था। मुझे खुशी है कि तुम हमारी रियासत की सबसे ईमानदार मुलाजिम साबित हुई हो।''

'हम क्या जानें कि तू इस वक्त सही बोलता है या गलत?'' कमला बोली-- ''ये भी तो हो सकता है कि तू वाकई परसों को मुझे चूर्ण देता और अब यहां बात खुलती देखकर रंग बदल रहा हो! मुझे यकीन नहीं है कि उस वक्त तूने वे सब बातें मुझसे परखने के लिए कहा था।''

कमला के ये अलफाज साफ कह रहे थे कि मेरे गद्दार होने का जितना पक्का यकीन उसके दिमाग में था अब यह उतना पक्का नहीं है। मेरी बातों में उलझकर वह भी टूटी है और बेकार ही अपना शक दोहरा कर अपनी बात को बड़ा करना चाहती है। मैं समझ रहा था कि इस वक्त लोहा गर्म है और चोट करने का यही वक्त है। और तभी मैंने अपने इन अलफाजों का हथौड़ा बनाकर चोट की ---'यकीन मानो कमला मैं इंद्रदेव की कसम खाकर कहता हूं कि वह केवल मेरी परख थी।''

इस तरह से - मैंनें उन दोनों को बड़ा खूबसूरत धोखा दिया। कुछ देर बाद पूरी तरह तो नहीं, लेकिन काफी हद तक मैंने उन दोनों के दिमाग में यह बात बैठा दी कि वह सब कुछ मैं केवल मुलाजिमों की परख के लिए कर रहा था।

अंत में कंचन ने कहा- ''तो सुन - इसी हफ्ते में तेरी शादी कमला के साथ हो जाएगी।''

मेरे कलेजे पर जैसे सांप लोट गए। यह तो मैं कभी ख्वाब में भी नहीं चाहता कि कमला मेरी पत्नी बने, लेकिन उस वक्त के हालातों से समझौता करके मैं बोला- ''अच्छा - तो कमला ने तुम्हें यह बात भी बता दी!''

''यह बात आज नहीं बताई है, बल्कि उसी दिन बता दी थी, जब तूने इसे अपनी मुहब्बत की दुहाई देकर इसका सब कुछ लूटा था।'' कंचन ने कहा- ''इसने उसी दिन मुझे अपनी और तेरी सारी कहानी मुख्तसर में बता दी थी। मैंने उसी दिन इसे वचन दे दिया था कि मैं तुम दोनों की शादी करवाऊंगी। उस दिन के बाद से कमला जब भी तुमसे मिलती है, मेरी इजाजत से मिलती है। यह तुम्हारे साथ हुई हर दिन की बात मुझे उस दिन से बताती रही है। तुमने कमला के साथ जिस-जिस दिन जो कुछ भी कहा है, वह मुझे सब पता लगता रहा है। जिस तरह कि तुम्हारी आज की सारी बातें कमला ने फौरन मुझे आज ही बता दीं।''

कंचन की बात सुनकर मैं हक्का-बक्का सा रह गया। जो बातें कंचन मुझे बता रही थी, उन बातों की तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इस वक्त उनके सामने मेरे मुंह से निकला एक भी गलत शब्द मेरे सारे किए-धरे पर पानी फेर सकता था, इसलिए बहुत संभलकर बोला- ''अच्छा हुआ बहन कि हमारी मुहब्बत का भेद तुम्हें पहले ही से मालूम है, वर्ना तुमसे अपनी शादी की बात करने में मुझे काफी कठिनाई होती। मैं तो इसी वक्त शादी के तैयार हूं।'' कहने को तो मैं अपनी बात प्रभावशाली बनाने के लिए कह गया - लेकिन अगर वह शादी के लिए तैयार हो जाती तो मैं मारा जाता।

मगर ऐसा हुआ नहीं, कंचन बोली- ''अभी नहीं-परसों इसी वक्त राजमहल में सबके सामने यह शादी होगी।''

''मुझे मंजूर है।'' मैंने कह दिया।

''अब तुम जा सकते हो।'' कंचन ने हुक्म दिया।

मैं जाने के लए जैसे ही मुड़ा, कंचन की आवाज फिर मेरे कानों में पड़ी-- ''जाते-जाते सुनते जाओ - यह मत समझना कि हमने तुम्हारी सारी बातों का यकीन कर लिया है। हो सकता है कि तुम वाकई दलीपसिंह के साथ मिलकर बगावत की योजना वना रहे हो और यहां बात पकड़ी जाने पर तुमने बात बदल दी हो। अभी हमें तुम्हारी किसी भी बात का यकीन नहीं हुआ है। हम बखूबी जांच करेंगे। तभी हमें यकीन होगा कि तुम झूठे हो या सच्चे.. न.. न.. न.. बीच में बोलने की कोशिश मत करो। हम तुमसे साफ कहे देते हैं कि अगर तुम्हारे दिल में किसी तरह का खोट हुआ तो हम तुम्हें सजा दिलवाएंगे। याद रहे - लड़की शादी के बाद अपने भाई और पति की लड़ाई में पति के साथ होती है। अगर उन्हें या कमला में से किसी को कुछ हो गया तो उसका दोषी हम तुम्हें ही ठहराएंगे। बिना जांच किए हम किसी भी हालत में तुम्हारी बातों का यकीन नहीं करेंगे। बस, अब तुम जा सकते हो।''

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