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देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

(पाठक जरा ध्यान दें। चौथे भाग के चौथे बयान में घटी घटना का भेद खुल रहा है।)

जब पिशाचनाथ ऊपर पहुंचा तो छत का थोड़ा-सा भाग एक तरफ हट गया था। उस भाग में से एक औरत ने नीचे झांका और अकेले पिशाचनाथ को सीढ़ी पर आता देखकर वह बोली- 'ओह! पिशाच.. तुम बड़ी देर इन्तजार कराने के बाद आए।'

'बस क्या बताऊं तारा. ..ये सुसरा ऐयारी का काम ही ऐसा है..।' कहते हुए पिशाचनाथ ने अपना हाथ ऊपर उठा दिया।

तारा ने बड़े प्यार से हाथ ऊपर खींचा और पिशाचनाथ को अपने से लिपटा लिया। वह व्यक्ति सीढ़ी के बिल्कुल नीचे आ गया। और ऊपर की तरफ कान लगाकर उन दोनों की बातें सुनने की कोशिश करने लगा।

'तुम इतनी देर तक कहां रहे मेरे राजा...?' तारा की आवाज।

'सब आराम से बताऊंगा।' पिशाच ने कहा- 'चलो बैठक में चलकर बातें करते हैं।'

'चलो...' तारा ने कहा- 'लेकिन.. पहले यह दरवाजा...।'

'अरे, उसे पड़ा रहने दो यूं ही।' लापरवाही में डूबी पिशाचनाथ की आवाज- 'अब उस रास्ते से आने वाला कोई नहीं है। मैंने सबका इन्तजाम कर दिया है। बड़े-बड़े ऐयारों को मैंने धोखा दे दिया है।'

इसके बाद कदमों की आवाज और फिर सन्नाटा।

थोड़ी देर बाद वह व्यक्ति लोहे की सीढ़ी पर चढ़कर ऊपर पहुंचा। जहां वह रास्ता खुलता था। उस कमरे में इस वक्त कोई भी नहीं था.. वह व्यक्ति सावधानी से चलता हुआ तुम्हारे (बलदेवसिंह के) घर की तरफ बढ़ा। तुम्हारी बैठक के दो दरवाजे हैं, जिनमें से एक बाहर की तरफ खुलता है, दूसरा घर के चौक में। चौक की तरफ का दरवाजा बंद था और बैठक के अन्दर मोमबत्ती की रोशनी थी। उस व्यक्ति ने किवाड़ों की दरार से आंख सटा दी। उसने देखा कि तारा और पिशाचनाथ एक ही खाट पर एकदूसरे की बांहों में लिपटे पड़े थे।

तारा कह रही थी- 'पिशाच, आज तुम बलदेव को उस रास्ते से कैसे लाए?'

'मजबूरी में लाना पड़ा तारा।' पिशाच बोला-- 'उस रास्ते से नहीं आते तो उन सबके साथ-साथ मैं भी शैतानसिंह की कैद में होता। बेनजूर की सेना ने आज हमें मठ में घेर लिया था। हमारे पास उनसे बच निकलने का इसके अलावा दूसरा रास्ता नहीं था।'

'लेकिन फिर तुमने सीढ़ी का सातवाँ डंडा क्यों दबाया?' तारा ने पूछा।

'दबाता नहीं तो तुम इधर से रास्ता कैसे खोलतीं? जब वह डंडा दबाने से इस घर के हर कमरे में लगा घंटा बोलता है तभी तो तुम यह समझती हो कि मैं तुमसे मिलने आया हूं और रास्ता खोलती हो।'

वो तो ठीक है.. लेकिन मुझे तो यह नहीं पता था कि तुम्हारे साथ बलदेवसिंह, रामकली और बिहारीसिंह हैं। मैं अगर उस वक्त तुम्हें अकेला जानकर जल्दी में कोई ऐसी बात कह देती जिसे सुनकर उन पर हमारी मुहब्बत का भेद खुल जाता तो बहुत बुरा होता।'

'यह तो ठीक है।' पिशाच बोला- 'और उस वक्त तुम बोलने वाली भी थीं। अगर तभी मैं तुम्हें चुप रहने के लिए वह गुप्त संकेत नहीं देता तो हमारा भेद खुल जाता और... यह बहुत बुरा होता।'

'शामासिंह और बलदेवसिंह मुझे तो बिल्कुल जिंदा नहीं छोड़ते।' भयभीत के अन्दाज में तारा बोली।

खैर, अब छोड़ो इन बातों को।' पिशाचनाथ बोला-- 'आज मैं तुम्हारा एक इम्तिहान लेना चाहता हूं।''

'इम्तिहान!' तारा हल्के से चौंककर बोली- 'कैसा इम्तिहान?'

'अपनी मुहब्बत का इम्तिहान।' पिशाचनाथ ने हल्की-सी मुस्कराहट के साथ तारा की आंखों में आंखें डालकर कहा- 'आज मैं देखना चाहता हूं कि तुम मुझसे कितनी मुहब्बत करती हो। आज तक तुमने मुझसे जो वादे किए हैं उन्हें किस तरह निभाती हो। आज मैं यही सब देखना चाहता हूं।'

'बेशक मेरे राजा।' उत्साहित-सी होकर तारा बोली- 'कोई भी इम्तिहान लो...  मैं जहन्नुम तक तुम्हारे साथ हूं।'

'तुमने मुझसे कहा था ना कि तुम शामासिंह की मुहब्बत से नहीं, बल्कि मेरी मुहब्बत से खुश हो।' पिशाचनाथ ने कहा- 'शामासिंह के साथ तो तुम लोकलाज के कारण इसलिए रहती हो, क्योंकि वह तुम्हारा पति है। तुमने मुझे यह भी बताया था कि बलदेवसिंह असल में तुम्हारी कोख से नहीं जन्मा है, वह शामासिंह की पहली पत्नी का लड़का है। शामासिंह की पहली पत्नी बलदेवसिंह को जन्म देते ही मर गई। उस वक्त तक को शामासिंह में पुरुषार्थ था, किंतु तुमसे शादी के पन्द्रह दिन बाद ही शामासिंह को दुश्मनों की फौजों ने पकड़ लिया। उसी लडाई में शामासिंह अपने पुरुषार्थ की सबसे अनमोल निधि खो बैठा। अब वह इस लायक नहीं है कि तुम्हें पति का सुख दे सके। इतना सबकुछ होने के बावजूद भी तुम शामासिंह और बलदेवसिंह के साथ केवल इसलिए रहती हो, क्योंकि सबकी नजरों में तुम शामासिंह की पत्नी और बलदेवसिंह की सगी मां हो।'

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