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देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

'लेकिन मैं तो तुमसे कितनी बार कह चुकी हूं कि इन दोनों को छोड़कर मैं हर वक्त तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूं।' तारा बोली।

'तुमने मुझे यह भी बताया था कि खुद वलदेवसिंह भी यह भेद नहीं जानता कि तुम उसकी सौतेली मां हो।'

'हां... हां... वह तो सब ठीक है, लेकिन तुमने भी तो कहा था कि मैं तुम्हें पत्नी के रूप में रामकली से ज्यादा अच्छी लगती हूं। तुम रामकली से ज्यादा मुझसे मुहब्बत करते हो।' तारा ने कहा-- 'तुमने भी मुझसे कई वादे किए थे। तुमने कहा था कि तुम एक ऐसे गहरे चक्कर में उलझे हुए हो, जिसमें अगर तुम कामयाब हो गए तो दुनिया के सबसे अमीर आदमी बन जाओगे, उस वक्त तुम रामकली और जमना से पीछा छुड़ाकर, मुझे साथ लेकर यहां से कहीं दूर ले जाओगे। फिर हम आराम से अपनी मुहब्बत की दुनिया में डूब जाएंगे। उस दिन का इन्तजार करते-करते इतने दिन निकल गए, लेकिन तुमने कभी अपना वादा पूरा नहीं किया। तुमने यह भी कहा था कि मुझे तिलिस्म की सैर कराओगे।'

'वह दिन तुम आज का ही दिन समझो तारा...।' पिशाचनाथ बोला- 'इसीलिए मैं तुम्हारे इम्तिहान की बात कर रहा था।'

'कैसा इम्तिहान, कुछ साफ-साफ भी कहो।'

'सुनो, मैं तुम्हें बताता हूं।' पिशाचनाथ बोला- 'मैं अपने उस काम में कामयाब हो गया हूं जिसमें कामयाब होने के बाद मैं दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति बनने के ख्वाब देख रहा था। वाकई आज मैं दुनिया का सबसे अमीर आदमी हूं और आज की रात मैं तुम्हें साथ लेकर यहां से बहुत दूर निकल जाना चाहता हूं बोलो...  क्या तुम तैयार हो?'

'मैं तो कब से तुम्हारे मुंह से निकलने वाले इन लफ्जों का इन्तजार कर रही थी।'

'लेकिन, हमें जाने से पहले यहां एक नाटक करना होगा।'

'कैसा नाटक?'

'हमें शामासिंह और बलदेवसिंह को ऐसे चक्कर में उलझाकर जाना होगा, जिससे वे तुम्हें तलाश करने का काम भूल जाएं।'

'ऐसा भला कैसे हो सकता है?'

'अगर तुम मदद करो तो सब कुछ हो सकता है...।' पिशाचनाथ ने बताया- 'मैंने सारी बातें बहुत पहले से अच्छी तरह से सोच रखी हैं। तुम्हें मालूम है कि मैंने शामासिंह और बलदेवसिंह को बेगम बेनजूर के महल की पहरेदारी करने के लिए भेज दिया है! यह काम मैं उनमें से किसी एक को अथवा बागीसिंह या गिरधारी को भी सौंप सकता था, किन्तु मैंने ऐसा नहीं किया, बल्कि जान-बूझकर यह काम मैंने शामा और बलदेव को ही सौंपा। इसलिए ताकि मैं इस वक्त यहां तुमसे मिल सकूं और तुम्हें सारी बातें मुख्तसर से समझा सकूं।'

'तुम कहो तो सही कि मुझसे क्या मदद चाहते हो?'

'केवल इतनी ही कि तुम एक नाटक में मेरा पूरा साथ दो।'

'कैसा नाटक?'

'मैं अच्छी तरह जानता हूं कि बेगम बेनजूर के महल में आज की रात कोई हंगामा नहीं होगा।' पिशाचनाथ ने कहना शुरू किया- 'शामासिंह और बलदेवसिंह वहां पहरा देते-देते उकता जाएंगे। मुझे उम्मीद है कि थोड़ी देर में लौटकर यहां आ जाएंगे। किंतु यहां एक ऐसा नाटक देखेंगे जिसे देखकर वे दोनों अपने दिमाग पर नियंत्रण खो देंगे।'

'ऐसा वह कौन-सा नाटक है?'

'मैं अपनी सूरत गिरधारीसिंह जैसी बनाऊंगा...।' पिशाचनाथ ने कहा- 'उस वक्त वे दोनों बैठक से बाहर ही होंगे, जब वे तुम्हारी चीख सुनेंगे। मुझे गिरधारीसिंह का अभिनय करना है और तुम्हें शामासिंह की चरित्रवान पत्नी जैसा। मैं गिरधारीसिंह बनकर तुम्हारी इज्जत लूंगा और तुम शामासिंह की वफादार बीवी का अभिनय करती हुई अपनी इज्जत बचाने की कोशिश करोगी।''

इतना सुनाकर गुरुजी एक क्षण ठिठके।

''इस तरह से'' गुरुवचनसिंह ने बताया-- ''पिशाचनाथ और तारा ने मिलकर इतनी गहरी साजिश की, जो तुमने बेगम बेनजूर के महल से अपने घर पर लौटते ही देखी। उनके बीच होने वाली जितनी भी बातें या हरकतें तुमने सुनीं अथवा देखीं, वह सब इनकी साजिश का ही अंग थीं। वाकई पिशाचनाथ की साजिश ऐसी थी कि तुम्हारी जगह जो कोई भी होता वह धोखा खा ही जाता।''

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