लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 4

देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''मैं सोच रहा था कि जब तुम शेरसिंह थे तो इन सब जगहों से कितनी अच्छी तरह परिचित थे।'' गुरुवचनसिंह ने कहा- ''लेकिन आज तुम्हें यहां का कोई रास्ता याद नहीं है और तुम एक अजनबी की तरह हो। एक जमाना वह था कि जब तुम यहां के सबसे बड़े ऐयार कहलाते थे। बड़े-बड़े राजा-महाराजा तुम्हारे नाम से कांपते थे। तुमने पिछले जन्म में ऐसे-ऐसे काम किए... जिन्हें आज तक कोई दूसरा ऐयार नहीं कर सका। तुम किसी जमाने में राजा सुरेंद्रसिंह के ऐयार हुआ करते थे और तुमने उसके लिए बड़े-बड़े काम किए थे। एक बार जब राजा चंद्रदत्त की सेनाओं ने सुरेंद्रसिंह की राजधानी को घेर लिया था तो तुमने अकेले ही ऐसा कमाल दिखाया कि रातों-रात सुरेंद्रसिंह की हार जीत में बदल गई। इसी तरह ऐयारी के न जाने कितने कमाल तुमने दिखाए थे। लेकिन आज तुम इन जगहों को भी नहीं पहचानते... जहां तुम अपने दुश्मनों को खुद कैद किया करते थे।''

''आप न जाने क्या-क्या कह रहे हैं... मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है!'' अलफांसे ने कहा।

''घबराओ मत।'' गुरुवचनसिंह अलफांसे को लेकर उस गुफा में दाखिल होते हुए बोले- ''जिस जगह मैं तुम्हें ले जा रहा हूं... अगर ईश्वर ने चाहा तो तुम्हें वहां पहुंचकर सबकुछ याद आ जाएगा। फिर तुम इन जगहों के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हो जाओगे। उस जमाने के बहुत-से आदमियों को पहचान भी लोगे। हो सकता है कि पिछले जन्म की याद आते ही तुम्हारा दिमाग फिर शेरसिंह की तरह ही काम करने लगे। अगर भगवान ने ऐसा कर दिया तो दुश्मनों के दांत खट्टे करने में बहुत मजा आएगा। फिर देखना... तुम्हारे दुश्मन तुम्हारे नाम से कांपने लगेंगे।''

इन बातों को बताने के बीच ही सुरंग में पहुंचकर गुरुवचनसिंह ने बटुए से मोमबत्ती और चकमक निकालकर रोशनी कर ली। रोशनी होते ही अलफांसे की नजर गुफा के एक कोने में बैठे सांप पर पड़ी। सांप अपना फन उठाए उसी की तरफ देख रहा था। सतर्क होकर अलफांसे एकदम पीछे हट गया और बोला- ''सांप.. वहां सांप बैठा है!'' - ''वह सांप नहीं है।'' कहते गुरुवचनसिंह बेखौफ उसकी तरफ बढ़े और अलफांसे के देखते-ही-देखते उन्होंने सांप का फन एक तरफ को मरोड़ दिया। सुरंग और मैदान के बीच का वह रास्ता बंद हो गया। अलफांसे सोच रहा था कि वैसे तो यहां के आदमी आजकल की वैज्ञानिक दुनिया से कितने पीछे हैं, लेकिन दिमाग के मामले में कितने आगे। इनके पास प्रयोग करने के लिए टाँर्च नहीं है.. अभी तक अंधेरे में सारे काम मोमबत्ती से ही करते हैं... चकमक से आग जलाते हैं, लेकिन गुप्त रास्ते कितने खास ढंग से बनाए हैं! अलफांसे आजकल की दुनिया का भयानक अपराधी था न जाने कितने ढंगों से.. कितने गुप्त रास्ते उसने देखे थे। आधुनिक युग में अपराधी अपने अड्डे और माल को गुप्त रखने के लिए जिन गुप्त स्थानों और मार्गों का प्रयोग करते हैं.. वैज्ञानिक उपलब्धियों के आधार पर बनाए जाते हैं। किन्तु ये लोग ऐसे ही काम दिमागदार कारीगरों से करवाते हैं। बल्कि आधुनिक युग में देखे जाने वाले गुप्त स्थान इत्यादि इनके हिस्से-से लगते हैं। इन्हीं सब बातों को सोचता हुआ अलफांसे गुरुवचनसिंह के साथ बढ़ा चला जा रहा था। सुरंग में चारों ओर दूर-दूर तक अन्धेरा था... इस अन्धेरे से लड़ती मोमबत्ती उन्हें आगे लिए जा रही थी। जब काफी देर से अलफांसे कुछ नहीं बोला तो गुरुवचनसिंह बोले- ''क्या सोच रहे हो बेटे?

''मैं सोच रहा था कि ये तिलिस्म क्या होता है?'' अलफांसे बोला- ''आपने मुझे थोड़ी देर पहले बताया था कि पिछले जन्म में मैं शेरसिंह और विजय देवसिंह था तो उस वक्त दुश्मनों द्वारा देवसिंह की पत्नी कांता को तिलिस्म में कैद कर दिया गया था। उस तिलिस्म को तोड़ने की कोशिश में देवसिंह मारा गया था और आपने यह भी कहा था कि कांता अभी तक तिलिस्म में बंद है। आप मेरा परिचय पाकर बहुत खुश हुए थे और आपने यह भी कहा था कि मेरे और विजय के हाथों ही वह तिलिस्म टूट सकता है... आखिर यह तिलिस्म है क्या?''

''पहले ये बताओ कि तिलिस्म को तुम क्या समझते हो?'' गुरुवचनसिंह ने कहा- ''तुमने कहीं किसी किताब में, जिसमें कि पिछले जमाने का चित्रण हो, पढ़ा तो जरूर होगा कि तिलिस्म नाम की भी जमाने में एक चीज हुआ करती थी। उस वक्त पढ़ते समय तुम्हें कैसा लगता... तिलिस्म के बारे में तुम्हारे अपने क्या ख्याल थे? क्या तुमने कभी गहराई से इस बारे विचार किया था... या केवल पढ़कर अथवा नाम सुनकर ही रह गए?''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book